ये ख़ौफ़ का भटका सा मंजर है।
सूर्य की छाया जैसे चाँद ढाल रहा है।
इस जीवन मृत्यु के भटके पथित पर,
उदासी हर मोड़ पर एक मृत्यु देती है।
अब शमसान व कबिर्स्तन की सड़के,
जैसे दोस्ती का साथ अर्थी को मोह लेता।
हर रोज हजारों चिताओ का ये लम्हा ,
एक प्यारी सी जिंदगी क्यों काटने को दौड़ती ?
जीवन हमें मिला है ख़ौफ़ के अंधियारों को ,
संघर्षो के तप से भरने का परन्तु ,
ये ख़ौफ़ ,ये उदासी का हर वो अंश
हमारे अपनो को हमसे ही छीन रहा है।
छोटी सी कलम ....©राज श्रीवास्तव ( नई दिल्ली )