देखते-देखते आदमी खो गया
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सादगी का शहर,अजनबी हो गया ।
देखते-देखते ,आदमी खो गया ।।
भीड़ बढ़ती रही,राह चलती रही ।
ढूंढ़ती आसरा ,गल प्रबलती रही ।।
मैं खड़ा उस जगह,मतलबी हो गया ।
देखते-देखते ,आदमी खो गया ।।
शब्द फूटे मिले,लाभ झून्ठे मिले ।
स्वप्न के दर्मियां ,आप रून्ठे मिले ।।
हौंसलों का शिखर ,कागजी हो गया ।
देखते-देखते ,आदमी खो गया ।।
मोह ममता ममीं,धुल गयी वह जमीं ।
मौन दिल बैठता,जम गईँ सब कमीं ।।
रीतियों का चलन ,लाजिमी हो गया ।
देखते-देखते,आदमी खो गया ।।
रास्ते क्या?बुनें,वास्ते क्या?चुनें ।
नापते वादियाँ ,कांपते क्या?सुनें ।।
दोस्तों में "अनुज ",दिल्लगी हो गया ।
देखते-देखते,आदमी खो गया ।।
अनुजयी दोहे -
(झलकृत शूल उसूल )
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रोते हैं दिखते नहीं,
बाबूजी मुस्कात ।
अंगुल पकड़े थे कभी,
छोड़ चले वह हाथ ।।
दिन दीखे अब रात सा,
बिखर गये सब साज ।
दर्पण खूब निहारते ,
भूल रहे पल आज ।।
राज सिखाये थे जिसे,
वही हो गये राज ।
हाथ पैर बल खा रहे,
बिगड़ रहे सद्काज ।।
साथ रहे टूटी छड़ी,
समय सिखाये लाज ।
कद ऊँचा लगता जहाँ,
छिने वहीं सर ताज ।।
प्रतिक्षण मन बस सोचता,
शहर रहा मगरूर।
नज़र परायी थी सखे,
डगर लगे मजबूर ।।
साज ताज नाराज सब,
विफरे प्यारे फूल ।
बाबूजी आँखन तले ,
झलकृत शूल उसूल ।।
डॉ अनुज कुमार चौहान "अनुज"
अलीगढ़ ,उत्तर प्रदेश ।
गीत
कविता प्रण , विश्वास जगाती ।
ख्वाब चित्र , अहसास प्रभाती ।।
सृजन छन्द ,महिमा दर्शाये ।
मनोवेग , आभास कराये ।।
कल्पित कभी, सत्य दुहराती ।
कविता प्रण , विश्वास जगाती ।।
ह्रदय पुलकित,राग सजाए ।
धूप-छाँव , अनुराग लुभाए ।।
पल-पल राग , नया गढ़ जाती ।
कविता प्रण , विश्वास जगाती ।।
पुष्प-वाटिका ,मरुथल गाये ।
राजा कभी ,रंक दिखलाए ।।
तृण-तृण गाती,क्षण-क्षण भाती।
कविता प्रण ,विश्वास जगाती ।।
खिलती कली ,कभी शरमाये ।
भावुक भुवन ,तरुण तड़पाये ।।
मानव भावों ,लय गहराती ।
कविता प्रण , विश्वास जगाती ।।
वर्तमान को, राह दिखाये ।
जीने की ,हर चाह सिखाये ।।
सदियों के, इतिहास बताती ।
कविता प्रण ,विश्वास जगाती ।
कभी खुशी गम, पाठ पढाये ।
आशाओं के ,दीप जलाये ।।
जन-मन प्रभु ,तीर्थ रम जाती ।
कविता प्रण ,विश्वास जगाती ।।
नदियाँ कभी, प्रबल वह जाए ।
शहर गाँव ,गलियाँ कहलाए ।।
दर्शन पथिक ,राह सम थाती ।
कविता प्रण , विश्वास जगाती ।।
शब्द सृष्टि का,प्रणय कराये ।
सागर में , लहरें ठहराये ।।
सुबह-शाम ,चाहत तरसाती।
कविता प्रण,विश्वास जगाती ।।
चांद सितारे ,दिनकर लाए ।
तोता -मैना ,नाच नचाये ।।
बचपन बाल, सखा मुस्काती ।
कविता प्रण,विश्वास जगाती ।।
नफरत द्वार ,आग इतराये ।
प्रेम -पुंज मन ,फाग सुहाये ।।
अनुज-गीत ,मधुरिम बरसाती।
कविता प्रण ,विश्वास जगाती ।।
कवि की कल्पना के शब्द
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कवि की कल्पना के शब्द,
अन्तर्मन जगाते हैं ।
कभी विश्वास तृण-तृण का,
कभी दर्पण दिखाते हैं ।।
कभी जीवन में ज्योति बन,
राह उज्जवल सजाते हैं।
कभी बन आसरा मन का,
स्वयं परिचय कराते हैं ।।
कवि की कल्पना के शब्द,
अन्तर्मन जगाते हैं -------
उमंगों की कभी दुनियाँ ,
तरंग-गति पास आते हैं ।
प्यास अधरों की मिट जाती,
सुखद द्रग-स्वप्न भाते हैं ।।
कवि की कल्पना के शब्द,
अन्तर्मन जगाते हैं ---------
दया के भाव संचित कर ,
अंश ईश्वर का पाते हैं ।
कभी वसुधा,कभी नभ के,
मिलन मय गीत गाते हैं ।।
कवि की कल्पना के शब्द,
अन्तर्मन जगाते हैं ----------
कभी सत्कर्म प्रेरित कर,
मार्ग - सद्भाव लाते हैं ।
कभी मुस्कान तन - मन में,
कभी उलझन मिटाते हैं ।।
कवि की कल्पना के शब्द,
अन्तर्मन जगाते हैं----------
कभी बह भक्ति की धारा,
शक्ति-सम ध्येय ध्याते हैं ।
बहक कर के "अनुज"लम्हे,
अतीत-ए -याद आते हैं ।।
कवि की कल्पना के शब्द,
अन्तर्मन जगाते हैं ।
कभी विश्वास तृण-तृण का
कभी दर्पण दिखाते हैं ।।
कृषि विधेयक
मिलता था मिलता रहे,
न्यून समर्थन मूल्य ।
मण्डी सैंग व्यवस्था भी,
नहीं रहेगी शून्य ।। (1)
अपनी फसल कहीं बेचें,
होके कृषक आजाद ।
उत्पादक साझीदार बन,
स्वयं लगाएँ भाव ।। (2)
घाटे में राशि मिले ,
बांधे नहीं करार ।
बिना दण्ड सब छोड़ दें,
किसी मोड़ व्यवहार ।। (3)
गिरवी बिक्री लीज से ,
दूर जमीं निर्देश ।
करार सिर्फ उत्पादन का,
जमीन स्वतंत्र विशेष ।।(4)
तकनीकी का फायदा ,
मिले उपकरण लाभ ।
हृदय की बस बात सुन,
रखें सदा सद्भाव ।।
बिस्कुट जरूरी है
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गायों को रोटी नहीँ , पिल्लों को बिस्कुट जरूरी है।
किसान का बेटा कहीँ, दिल्लों को मिस्कुट जरूरी है ।।
बल भी खाती हैं मगरूर,कागज की नई नावें भी ।
सम्मान निधि इतराईं , बिल्लो को झमगुट जरूरी है ।।
डॉ अनुज कुमार चौहान "अनुज"
अलीगढ़ , उत्तर प्रदेश ।