भविष्य में चांद के डगमगाने से आएगा दुनिया पर बड़ा खतरा

रंजना मिश्रा 

इन दिनों कुदरत के कहर ने पूरी दुनिया को हिला कर रखा हुआ है, कहीं भीषण बाढ़ है, तो कहीं भीषण गर्मी। जर्मनी जैसे विकसित मुल्क भयंकर बाढ़ की चपेट में हैं, वहां के मौसम वैज्ञानिक कह रहे हैं कि 1000 साल के इतिहास में ये सबसे विनाशकारी बाढ़ है। दूसरी तरफ अमेरिका के 12 राज्य जंगलों में लगी आग से परेशान हैं, महाशक्ति पूरी शक्ति लगाने के बाद भी आग नहीं बुझा पा रही है।

          कोरोना महामारी के महा संकट के बीच दुनिया पर नई आफत टूट पड़ी है। यूरोप पानी से परेशान है तो अमेरिका आग से। इस समय विश्व के कई देश कुदरत के कहर से जूझ रहे हैं। कहीं एक महीने की बारिश सिर्फ एक दिन में हो रही है, तो कहीं सूखा पड़ रहा है। कई देश बेतहाशा गर्मी से परेशान हैं और जंगलों में आग लगी हुई है। सबसे भयंकर स्थिति यूरोपीय देशों की है, जहां 1000 साल की सबसे विनाशकारी बाढ़ आई है। जर्मनी में भयंकर बाढ़ आने से जान माल का बहुत नुकसान हुआ है। वैज्ञानिक इसकी वजह जलवायु परिवर्तन को बता रहे हैं। ऐसा लगता है कि अब दुनिया की तबाही का समय आ गया है, क्योंकि यूरोप के सबसे ज्यादा अमीर देशों को इन दिनों कुदरत की मार का सामना करना पड़ रहा है। जर्मनी और बेल्जियम में पिछले 100 सालों में ऐसा संकट नहीं आया जैसा पिछले एक हफ्ते में आया है। यहां दर्जनों नदियां ओवरफ्लो हैं और कई शहरों में कई फीट पानी भरा हुआ है। जर्मनी की बड़ी आबादी खतरे में है। यूरोप में बाढ़ ने कम से कम 200 से ज्यादा लोगों की जान ले ली है, दूसरी तरफ अमेरिका और कनाडा में इस बार जितनी गर्मी पड़ रही है, उतनी आज तक नहीं पड़ी। अमेरिका और कनाडा में भीषण गर्मी और लू की वजह से सैकड़ों लोग मारे गए हैं। कनाडा में कई समुद्री तटों पर पानी इतना गर्म हो गया कि लाखों समुद्री जानवरों की उबलने से मौत हो गई। ये घटनाएं आश्चर्यचकित करने वाली किंतु सत्य हैं। 

       संयुक्त राज्य अमेरिका के उत्तर-पश्चिमी हिस्से अपने ठंडे मौसम के लिए जाने जाते हैं, इन इलाकों में साल भर बर्फबारी होती है, लेकिन पिछले एक महीने में सैकड़ों लोग भीषण गर्मी की वजह से मारे गए। कनाडा में इतनी गर्मी पड़ने लगी कि जंगलों में आग लगने लगी, जिसकी वजह से जंगलों के आसपास बसे दर्जनों गांव पूरी तरह से जल गए। वहीं रूस में इस साल रिकार्ड तापमान दर्ज किया गया। इन आपदाओं को देखते हुए दुनिया अब भी जलवायु परिवर्तन को गंभीरता से नहीं ले रही है। पिछले 100 सालों में यूरोप और अमेरिका के सबसे धनी देशों ने प्रकृति के साथ जो खिलवाड़ किया है, कोयला, तेल और गैस जलाकर प्रकृति का दोहन किया है, उसने दुनिया को बर्बादी के रास्ते पर लाकर खड़ा कर दिया है। विश्व के मौसम में आया यह खतरनाक परिवर्तन, ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन का ही नतीजा है, इससे दुनिया गर्म हो रही है, बर्फ पिघल रही है और दुनिया तबाही के रास्ते पर फिसलती जा रही है।

      इसी बीच अमेरिकन स्पेस एजेंसी नासा ने एक और चिंता बढ़ाने वाली खबर दुनिया को दी है। नासा की एक रिसर्च में, जिसमें उसने सूरज, चांद, पृथ्वी और दूसरे ग्रहों के मूवमेंट की स्टडी की है, एक नई जानकारी सामने आई है, जो बेहद डराने वाली है। नासा ने दावा किया है कि सौरमंडल में ऐसा बदलाव होने वाला है, जिससे पूरी दुनिया में तबाही आ सकती है और तबाही भी ऐसी कि पृथ्वी के अस्तित्व पर ही खतरा मंडराने लगेगा। इस तबाही में पूरी दुनिया समंदर के पानी में डूब सकती है और यह खतरा सौ दो सौ साल बाद नहीं बल्कि 9 साल बाद ही आने वाला है।

        सौरमंडल का हर ग्रह एक तय स्पीड में अपने-अपने आर्बिट में चक्कर लगाता है, लेकिन यदि उनमें से कोई अपनी स्पीड बदल दे, कोई ग्रह या उपग्रह अपने तय स्थान से भटक कर किसी दूसरे स्थान पर चला जाए, तो क्या होगा? नासा ने ऐसे ही कुछ सवालों का जवाब ढूंढा है। नासा की एक स्टडी के मुताबिक 2030 में हाई टाइड से आने वाली बाढ़ बेहद विनाशकारी होगी, इसकी वजह चांद का अपनी कक्षा से डगमगाना होगा। धरती से करीब 3 लाख 50 हजार किलोमीटर दूर स्थित चांद, आज से 9 साल बाद दुनिया के तटीय इलाकों में भयंकर तबाही मचाने वाला है, यह चेतावनी नासा द्वारा दी गई है। नासा के मुताबिक 2030 तक ग्लोबल वार्मिंग की वजह से समुद्री जल स्तर काफी बढ़ जाएगा और बढ़ते जलस्तर में चांद जब अपनी जगह बदलेगा तो हाई टाइड काफी बढ़ जाएंगे, जिससे विनाशकारी बाढ़ आएगी। नासा की यह स्टडी क्लाइमेट चेंज पर आधारित जर्नल नेचर में 21 जून को प्रकाशित की गई है। 

      चांद पर हलचल के चलते धरती पर आने वाली बाढ़ को उपद्रवी बाढ़ कहा गया है, इस तरह की बाढ़ तटीय इलाकों में आती है, जब समुद्र की लहरें रोजाना की औसत ऊंचाई के मुकाबले 2 फीट ऊंची उठती हैं। समंदर में उठने वाली लहरों से घर और सड़क पानी में डूब जाते हैं और दैनिक दिनचर्या प्रभावित होती है, लेकिन ग्लोबल वार्मिंग और चांद की जगह में बदलाव इन लहरों को और ऊंचा उठा सकता है। स्टडी में कहा गया है कि अमेरिकी तटीय इलाकों में समुद्र की लहरें अपनी सामान्य ऊंचाई के मुकाबले तीन से चार फीट ज्यादा ऊंची उठेंगी यानी समंदर से उठने वाली लहरें पहले से कहीं ज्यादा खतरनाक होंगी और यह सिलसिला एक दशक तक जारी रहेगा। स्टडी में यह भी पाया गया है कि बाढ़ की स्थिति पूरे साल में नियमित तौर पर नहीं रहेगी बल्कि कुछ महीनों के दरमियान ये स्थिति बनेगी, जिससे इसका खतरा और बढ़ जाएगा। चांद हमेशा अपनी ग्रेविटी की वजह से समुद्री लहरों को आकर्षित करता है, जिससे हाई टाइड आती हैं। चांद का खिंचाव और दबाव दोनों साल दर साल संतुलन बनाए हुए हैं। चांद हर 18.6 साल में अपनी जगह पर हल्का सा बदलाव करता है, इस पूरे समय में आधे वक्त चांद धरती की लहरों को दबाता है, लेकिन आधे वक्त में चांद लहरों को तेज कर देता है, उनकी ऊंचाई बढ़ा देता है, जो कि खतरनाक है। नासा की रिसर्च के मुताबिक, अब चांद के 18.6 साल की पूरी साइकिल का वह आधा हिस्सा शुरू होने वाला है, जो धरती की लहरों को तेज करेगा, यह 2030 में होगा, तब तक वैश्विक समुद्री जलस्तर काफी बढ़ चुका होगा। इस रिसर्च के मुताबिक अपनी कक्षा में चांद के जगह बदलने, ग्रेविटेशनल खिंचाव, बढ़ता समुद्री जलस्तर और क्लाइमेट चेंज एक साथ मिलकर दुनिया के कई देशों के तटीय इलाकों में न्यूसेंस फ्लड की समस्या पैदा करेंगे। इससे सबसे ज्यादा परेशानी अमेरिका में होगी क्योंकि वहां तटीय पर्यटन स्थल बहुत ही ज्यादा हैं। समुद्र के बढ़ते जल स्तर की वजह से पहले से ही निचले इलाकों में खतरा लगातार बढ़ रहा है, अब आने वाले समय में यह खतरा और बढ़ जाएगा।

         भले ही चांद पृथ्वी का उपग्रह है, लेकिन चांद की हर मूवमेंट का असर पृथ्वी पर पड़ता है। चांद की गुरुत्वाकर्षण शक्ति पृथ्वी पर खासा असर डालती है, इसकी वजह से पृथ्वी की अपनी ही धुरी पर घूमने की गति पर असर होता है, वहीं पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के कारण चांद की कक्षा पर भी असर पड़ता है, लेकिन 9 साल बाद यानी 2030 में चांद के अपनी जगह से खिसकने से पृथ्वी पर और भी ज्यादा असर होगा, हाई टाइड के समय आने वाली लहरों की ऊंचाई करीब 3 से 4 गुना ज्यादा हो जाएगी। नासा ने चेतावनी दी है कि न्यूसेंस फ्लड साल 2030 तक बहुत ज्यादा बढ़ जाएंगे, ये साल में एक या दो बार नहीं बल्कि हर महीने आएंगे, क्योंकि जब भी चांद की आर्बिट में हल्का फुल्का बदलाव आएगा तो बाढ़ ज्यादा नुकसानदेह हो जाएगी। तटीय इलाकों में बाढ़ हर महीने दो या तीन बार आएगी। नासा की स्टडी में कहा गया है कि जैसे-जैसे चांद की स्थिति बदलती जाएगी, वैसे-वैसे तटीय इलाकों पर आने वाले न्यूसेंस फ्लड वहां रहने वालों के लिए खतरनाक साबित होंगे। नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के मुताबिक साल 1880 से अब तक समुद्र का जल स्तर 8 से 9 इंच तक बढ़ चुका है और इसमें से एक तिहाई यानी करीब 3 इंच बढ़ोतरी पिछले 25 सालों में हुई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2100 तक समुद्र का जल स्तर 12 इंच से 8.2 फीट तक बढ़ सकता है और ये दुनिया के लिए काफी खतरनाक होगा। दुनिया के सभी देशों को मिलकर इस खतरे से निपटने की योजना बनानी होगी, क्योंकि ये खतरा सिर्फ एक देश या महादेश पर नहीं बल्कि पूरी दुनिया पर है। यदि इस खतरे से निपटने की तैयारी नहीं की गई तो दुनिया तबाह हो सकती है। खतरा बड़ा है, इसलिए इससे निपटने की तैयारी भी बड़े स्तर पर करनी होगी।


रंजना मिश्रा ©️®️

कानपुर, उत्तर प्रदेश

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