सीमा लोहिया
मेरी सखियों में *रमा* डोलिया का चेहरा बङा न्यारा है।
उसको मेरा और मुझे उसका साथ लगता कितना प्यारा है।।
उम्र से पहले ही अधिक परिपक्व हो चुके है अनुभव जिसके ।
सलाह -मशविरा जब भी किया मुझे तनाव से उभारा है।।
बेगाने शहर में दोस्ती को आत्मीय रस से सिंचित करती।
घंटो बतीयाते हुए बनती रही हम एक दूजे का सहारा है।।
सागर में गागर भरती इनकी तार्किक बाते कितनी निराली ।
पीहर हो या ससुराल इनकी नेतृत्व क्षमता ने उसे संवारा है।।
हँसते हँसते शिकायती लहजे में चतुराई से कहती इतना।
मेरे ह्रदय छूते इस करारेपन में भी संग बहती प्रेम धारा है ।।
प्रभाव के चुम्बकीय ध्रुवों से हम दोनो खिंचते चले आये ।
नीरसता हुई नदारद जब जब खुला हमारी बातों का पिटारा है।
"सीमा" सृजन का विषय -बिन्दू बनने की जिसने ख्वाहिश जतायी ।
आज उसी शख्सीयत को ही मैने अपने शब्दों में उतारा है।।
रचनाकार--सीमा लोहिया
झुंझुनू (राजस्थान)
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