शास्त्री सुरेन्द्र दुबे अनुज जौनपुरी की कलम से

 


यात्रा द्वारका धाम

देवभूमि गुजरात की,

तीर्थों में तीर्थ महान।

कण कण में राधे किशन,

पावन धाम पुरान।।


द्वारिका नगर पावन तीर्थस्थल ।

चार धामों का हृदयास्थल ।।


सप्त पुरियों में एक पुरी है।

वैकुंठधाम द्वारिकापुरी है।।


पतित पावन द्वारका पुरी है। 

भारत के पश्चिम सिंधु तरी है।।


भगवान कॄष्ण ने इसे बसाया। 

श्रीकृष्ण की कर्मभूमि कहलाया।।


आधुनिक द्वारका एक शहर है। 

चारों ओर रची ऊंची दीवार है ।।


 मन्दिर विशाल इसके अंदर है।

आस्था प्रेम का अद्भुत नगर है ।।


वेद वर्णित नगर को,

शोध रहा विज्ञान।

डेढ़ दशक बीता मगर ,

रहस्य न पाया जान।।


नौसेना की मदद से, चले बहुत अभियान।

सिंधु गर्भ में द्वारका के,

मिल जाएं परमान।। 


समुद्र की उस गहराई में,

कुछ पत्थर मिले पुरान।

फिर भी परदा रहस्य से,

उठा न सका विज्ञान।।


आज तक तय नहीं कर सका है कोई।

कृष्ण की माया नगरी डूबी जो सोई ।।


सिंधु के गर्भ में द्वारिका कैद है ।

गोताखोरों का एक दल मुस्तैद है।।


गर्भ में खोजता फिर रहा है नगर।

तलहटी में भटकता इधर से उधर।।


अवतरित कृष्ण मथुरा हुए,

गोकुल में हुए सयान।

वृंदावन बरसाने रसिया ,

द्वारका किए प्रयाण।।



यहीं से भारत देश की, बागडोर ली हाथ।

राजधानी निर्मित किए,

कुल दल बल के साथ।।


दिया सहारा पांड़वों को, धर्म ध्वजा फहराया। जरासंध शिशुपाल कंस,

दुर्योधन को धूल मिलाया।। 


बड़े बड़े राजा महाराजा,

दरबार लगाने आते।

बलराम कृष्ण से अभयदान पा,

अपना राज्य चलाते।।


द्वारका का धार्मिक महत्व बड़ा है।

पग पग रहस्यों से भरा पड़ा है।।


*कहा जाता है कि*


 जब देह त्याग वैकुंठ गये,

श्री राधे कृष्ण भगवान।

सिंधु तरी तब द्वारका,

कहते श्रुति वेद पुरान ।।


द्वारकापुरी का प्रमाण,

सिंधु में अभी मौजूद है।

विज्ञान भी है मानता,

द्वारका का रहा वजूद है।।

 

*निकटवर्ती तीर्थ*


द्वारका के दक्षिण में, गोमती द्वारका ताल ।

नाम गोमती द्वारका,

नहाए कन्हैया लाल।। 


पिण्ड दान करते यहां,

हरते पितरों के ताप।

निष्पाप कुण्ड नौ कुण्ड का,

है अद्भुत महाप्रताप ।।


निष्पाप कुण्ड स्नान कर,

कर पंच कूप जल पान। 

रणछोड़ द्वारकाधीश के, फिर मंदिर करें प्रयाण।।


गोमती लक्ष्मी श्री कृष्ण का,

अगणित मंदिर धाम।

रणछोड़जी की कृपा से,

हर्षित नर आठो याम।।


मंदिर में रणछोड़ की चार फुट ऊंची मूर्ति।

रजत सिंहासन विराजमान है। 

यहां पाषाण कृष्ण प्रति मूर्ति।।


हीरे-मोती से सजी,

गले ग्यारह सोने का माल।

पीत वस्त्र धारण किए,

सोहें श्माम गोपाल।।


एक हाथ में शंख है, 

दूजे में सुदर्शन चक्र।तीजे में गदा चौथे कमल,

सिर पर सोने का छत्र।।


चतुर्भुजी हरि छवि को,

देख न नयन अघाय।

तुलसी दल और पुष्प ले,

खुश नटवर हो जांय ।।


मंदिर के चौखटों पर, चांदी के पत्तर मढ़े हैं। मन्दिर की छत में कीमती ,

झाड़-फानूस लटकते हैं।


पहली मंजिल पर अम्बा

देवी की,

मूर्ति मनोहर सुन्दर है।सात मंजिले और कुल मिलाकर,

इकसौ चालीस फुट मंदिर ऊंचा है।।


कर दर्शन रणछोड़ का, करें परिक्रमा सात,

जन्म जन्मांतर के कटे,

नर के सारे पाप ।।


शास्त्री सुरेन्द्र दुबे अनुज जौनपुरी 

🙏🏽🙏🏽🙏🏽 जय श्री राधे कृष्ण 🙏🏽🙏🏽🙏🏽

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