तुम्हारे लिए

लघुकथा 

सरिता गुप्ता

विवेक के परिवार में आज बड़े भाई के बेटे के जन्म के उपलक्ष में सभी का भोज आयोजित किया गया था। मांँ ने संध्या को पारिवारिक उत्सव में आने के लिए सख्ती से मना कर दिया था क्योंकि विवेक ने अपनी पसंद की एक पढ़ी-लिखी मॉर्डन लड़की से विवाह किया था।मांँ का कहना था वह यहांँ पर जींस टॉप पहन कर आएगी तो हमारी बिरादरी में नाक कट जाएगी। विवेक अंदर ही अंदर बहुत दुखी था। संध्या को जब यह पता चला तो उसने मन ही मन कुछ संकल्प किया और विवेक से कहा आप चिंता मत करो मैं आपकी परिवार में नाक नीची नहीं होने दूंगी। भोज वाले दिन विवेक संध्या को लेकर परिवार के सामने पहुंँचा तो सभी की आंँखें आश्चर्य से खुली रह गई। संध्या बॉर्डर की साड़ी में सलीके से लिपटी हुई बहुत ही सुन्दर लग रही थी। विवेक की माँ की आंँखें संध्या के चेहरे से हट ही नहीं रही थी। संध्या ने आगे बढ़कर मांँ के पैर छुए, माँ ने उसे गले से लगा लिया और आंँखों ही आंँखों में विवेक से कहने लगी अरे! मैं कितनी बड़ी ग़लतफहमी में थी। सभी मेहमान संध्या की तारीफ करते नहीं थक रहे थे। विवेक ने संध्या से अकेले कमरे में कहा-" यह तुमने साड़ी पहनना कहाँ से सीखा...? संध्या ने उसके गले में डालते हुए कहा-" जब तुम मेरी ख़ुशी के लिए जींस-टॉप स्वीकार कर सकते हो तो तुम्हारी ख़ुशी के लिए मैं साड़ी क्यों नही."....?


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