ग़ज़ल

  


सुभाषिनी जोशी 'सुलभ'

हर तीर पर निशाना साधना चाहती हूँ। 

आइनों की हकीकत जानना चाहती हूँ। 


जहान को बस में करने की आरजू लिए, 

लहरों को दामन में थामना चाहती हूँ। 


पलभर के लिए तो जी लूँ जिन्दगी अपनी, 

कुछएक शौक में भी पालना चाहती हूँ। 


कोई गम मिल जाए इस जीवन में ऐसा, 

जिसके लिए रातभर जागना चाहती हूँ। 


जीवन की शाम ए अलम ढलने से पहले, 

दुखों को मीजा़न में तौलना चाहती हूँ। 


बाकी सरहद ना रहे जमाने में कोई। 

मुल्कों की खाई को पाटना चाहती हूँ। 


क्यों सस्ती हो गई मौत दुनिया में इतनी, 

हरइक जां की कीमत आँकना चाहती हूँ। 


सुभाषिनी जोशी 'सुलभ'

इन्दौर मध्यप्रदेश

Popular posts
सफेद दूब-
Image
अस्त ग्रह बुरा नहीं और वक्री ग्रह उल्टा नहीं : ज्योतिष में वक्री व अस्त ग्रहों के प्रभाव को समझें
Image
अभिनय की दुनिया का एक संघर्षशील अभिनेता की कहानी "
Image
वंदना सिंह त्वरित : साहित्यिक परिचय
Image
कर्ज संकट की खास योग
Image