'एहसास -ए-महरूम न बन'

 


अनुपम चतुर्वेदी


कमअक्ल  होना  कोई  गुनाह  नहीं,

पर   एहसास - ए - महरूम  न  बन।


तुम्हें  क्या  पता ? कैसे  बीतते  हैं लम्हे,

किसी की बद्दुआओं का मजमून न बन।


तशरीफ़ फरमा तू बड़े शौक से जालिम,

किसी की महफ़िल में ख़ाक-ए-शुकून न बन

   

रूह  से  नाता  है बहुत, पाक मुहब्बत का ,

जिस्मानी रिश्तों का पैगाम-ए-कारकुन न बन।


तेरे खुतूत को अब भी सम्हाल के रक्खा है,

दीदार-ए-यार का तौफीक-ए-जुनून न बन। 


एहतराम से जिन्दगी बसर हो साहिब

 नापाक इरादों का,खामखां हुजूम न बन ।


अनुपम चतुर्वेदी, सन्त कबीर नगर, उ०प्र०

रचना स्वरचित, सर्वाधिकार सुरक्षित

मोबाइल नं ०-9936167676

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