प्रीति ताम्रकार
गरम गरम रोटियां
माँ तुम्हारे हाथ की
तवे से उतरी रोटी
बहुत याद आती है
अब मैं सबको खिलाती हूँ
गरम गरम रोटियां
पर मेरे खाने के समय पर
ठंडी हो जाती है
वही गरम गरम रोटियां
पर जब भी आती हूँ मायके
तुम और भाभी खिलाती हो
बड़ी प्यार-मनुहार से मुझे
तवे से उतरी रोटियां
कई वर्ष बीते,
अब तो चाह भी नही रही
तवे की उतरी रोटी की
पर यह क्या हुआ अचानक आज
मुझे ससुराल में भी मिलने लगी
गरमा गरम रोटियां
हाँ माँ, अब बड़ी हो रही हैं न मेरी बेटियां
इसीलिए परोसती हैं मुझे वो
मेरी पसंद की गरम गरम
तवे से उतरी रोटियां
✍️प्रीति ताम्रकार
जबलपुर