डाॅ० अनीता शाही सिंह
तन्हा बैठी थी एक दिन मैं
अपने मकान में
चिड़िया बना रही थी घोंसला रोशनदान में
पल भर में आती पल भर में जाती वो
छोटे-छोटे तिनके चोंच में भर लाती थी वो
बना रही थी वो अपना घर एक न्यारा
कोई तिनका था, ना ईट उसकी कोई गारा
कुछ दिन बाद
मौसम बदला, हवा के झोंके आने लगे
नन्हे से दो बच्चे घोंसले में चहचहाने लगे
पाल रही थी चिड़िया उन्हें
पंख निकल रहे थे दोनों के
पैरों पर करती थी खड़ा उन्हें
देखती थी मैं रोज उन्हें
ज़ज़्बात मेरे उनसे कुछ जुड़ गए
पंख निकलने पर दोनों बच्चे
माँ को छोड़ अकेला उड़ गए
चिड़िया से मैंने पूछा
तेरे बच्चे तुझे अकेला क्यों छोड़ गए
तू तो थी माँ उनकी
फिर ये रिश्ता क्यों तोड़ गए
चिड़िया बोली
परिन्दे और इंसान के बच्चे में यही तो फ़र्क है
इंसान का बच्चा
पैदा होते ही अपना हक़ जताता है
न मिलने पर वो माँ बाप को
कोर्ट कचहरी तक भी ले जाता है
मैंने बच्चों को जन्म दिया
पर करता कोई मुझे याद नहीं
मेरे बच्चे क्या रहेंगे साथ मेरे
क्योंकि मेरी कोई ज़ायदाद नहीं।।
डाॅ० अनीता शाही सिंह
प्रयागराज