जीवन के बदलते स्वरूप

 कहानी

पूनम शर्मा " स्नेहिल " 

बात कुछ वर्ष पुरानी है । किरण अपने मांँ-बाप की इकलौती संतान थी । बड़े ही नांजो में पली-बढ़ी थी । उसने कभी भी किसी भी प्रकार के अभाव को नहीं देखा था । दुःख तकलीफ क्या होती है ,उसे पता ही नहीं था ।

किरण अक्सर लोगों को बोल दिया करती थी कि तुम लोग हमेशा किसी ना किसी बात का रोना रोते रहते हो । इसमें शायद उसकी भी कोई गलती नहीं थी ।

धीरे-धीरे समय बीतता गया ,किरण ने स्कूल की पढ़ाई पूरी कर कॉलेज में एडमिशन लिया ।


धीरे - धीरे कॉलेज की पढ़ाई भी पूरी हो गई। दोस्तों के साथ मौज- मस्ती करते हुए किरण ने अपने स्कूल और कॉलेज के दिनों को बहुत ही अच्छे तरीके से जीया था । पढ़ाई पूरी होने के बाद किरण के मां-बाप को किरण के विवाह का विचार आया । उन्होंने अच्छे रिश्ते देखना शुरू किये ।कुछ समय में किरण की शादी तय हो गई। फिर क्या था ? रस्मों रिवाज का दौर चल पड़ा ।सगाई ,हल्दी ,मेहंदी ,संगीत, शादी और रिसेप्शन सारे रस्मों रिवाज एक सुंदर सपने की तरह पूर्ण हो रहे थे ।किरण बहुत खुश थी।


 किरण का विवाह एक संयुक्त परिवार में हुआ था । विवाह के वक्त सभी ससुराल वाले उसके सामने एक अलग ही रूप में दिखाई दे रहे थे। किरण को आगे पढ़ने की बहुत इच्छा थी। किरण के ससुर जी ने उससे विवाह के बाद पढ़ाई जारी रखने का आश्वासन दिया था। सो फिर क्या था ? किरण बहुत खुश थी क्योंकि उसका सपना जो पूरा होने को दिख रहा था , पर उसे क्या पता था कि  उसके ससुराल वालों ने उसके साथ कितना बड़ा छल किया था।


 शादी के बाद धीरे-धीरे किरण को इन बातों का एहसास हो जाता था धीरे-धीरे करके उन्होंने किरण को इस कदर परेशान कर दिया कि वह कुछ सालों तक डिप्रेशन का शिकार हो गइ थी।


 तब जाकर किरण को दुःख और तकलीफ का मतलब समझ में आया था । किरण सभी को खुश रखने की बहुत कोशिश करती थी पर वह कुछ भी कर ले उसके ससुराल वाले हमेशा उस में कमी निकालते रहते थे।

 यहांँ तक  किरण के जीवन साथी ने भी कभी उसे समझने का प्रयास नहीं किया था। इसी बीच किरण ने अपने 2 बच्चों को जन्म से पहले ही खो दिया था‌ काफी कुछ टूटता जा रहा था। किरण के भीतर । ना तो वह किसी से अपनी बात कह पाती थी , और ना वह किसी के बात सुनने के लिए अपने आपको तैयार कर पाती थी ।

यह सिलसिला चलता रहा इसी बीच किरण के पिताजी का देहांत हो गया ।वह पूरी तरह से टूट चुकी थी । उसे समझ नहीं आता था कि वह क्यों जी रही है । लेकिन धीरे-धीरे उसे यह समझ में आने लगा कि उसे अगर जीना है तो अब बहुत कुछ चीजों को उसे खुद से दूर करना होगा क्योंकि अगर वह ऐसा नहीं करेगी तो बहुत जल्दी शायद वो घुट -घुट कर मर जाएगी। और इससे किसी को कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला ।


अब तो उसके पिता भी नहीं थे ,उसे संभालने या समझाने के लिए । किरण अपनी मां पर किसी तरीके का दबाव नहीं बनना चाहती थी

। उसके बाद उसके बच्चों का क्या होगा यह सोचकर किरण अक्सर परेशान रहती थी, क्योंकि उसे पता था कि जो लोग उसके जीते जी उसके बच्चे को कभी नहीं पूछते वह उसके मरने के बाद भला क्या पूछेंगे , 

किरण ने उन सभी लोगों से दूर हटने का फैसला किया जो केवल अपने स्वार्थ के लिए उसके साथ जुड़े हुए थे । स्वार्थ कभी भी किसी भी रूप में होता , लेकिन अब यह सब बहुत हो चुका था ।


किरण अब इन चीजों के तैयार नहीं थी ।उसने सभी से दूरियांँ बनाना शुरू किया दिया ।दूरियांँ बनाने के बाद अब किरण सुकून महसूस करने लगी थी । अब उसे किसी बात का अफसोस नहीं रहता था । इसलिए नहीं कि वह अकेले रहना चाहती थी, इसलिए नहीं कि उसे परिवार पसंद नहीं था बल्कि इसलिए कि वह हजारों के बीच में रहकर अकेला रहना पसंद नहीं करती थी ।

उसे लगता था कि जब हजारों के बीच में रहकर भी अकेले रहना है ,तो अकेले रहने में क्या बुराई है । कम से कम इसमें भीड़ में रहने का भ्रम तो नहीं होगा और तो और उसे कभी भी यह महसूस नहीं हुआ कि उसका जीवन साथी कभी उसे समझ सकेगा । इसलिए किरण का हर तरफ से रुझान हट चुका था ।


 यह तो तय है कि जब तक जिंदगी है , मौत नहीं आती । जिंदगी आपके लिए अध्याय चुनकर रखती है । जब तक वह पूर्ण नहीं होगा जिंदगी का भी अंत नहीं होना । उसने खुद से प्यार करना और अपने बच्चों के यह जीने का निश्चय किया। आज वह अकेले रहकर भी काफी खुश  है ।


अब किरण अपनी जिंदगी में किसी को भी इतनी जगह नहीं देना चाहती कि वह उसकी भावनाओं के साथ खेले या उसकी भावनाओं को ठेस पहुंँचाए । बस अपने में खुश रहकर किरण सभी बातों से बेपरवाह रहना चाहती थी। वह किसी से भी अब वह अपनी जिंदगी में किसी को भी ज्यादा अहमियत नहीं देना चाहती शायद यही वह किरण है जो एक समय में दुःख तकलीफ का मतलब भी नहीं जानती थी ।आज वह इन्हीं चीजों से दूर रहने के लिए हर उस शख्स से दूर रहती है। हर उस चीज से दूर रहती है ।जो उसके लिए परेशानी या चिंता का सबब बन सकता है।


 सच ही कहा है किसी ने आप खुद नहीं जानते कि आपकी जिंदगी कब कहांँ और कैसे आपके विचारों को परिवर्तित कर देगी ।हम लोग किसी भी चीज के लिए इंसान को दोषी बनाते हैं। जबकि दोषी तो वह हालात होते हैं जो उसे अच्छा या बुरा बनने पर मजबूर करते हैं ।

          पूनम शर्मा " स्नेहिल " जमशेदपुर

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