रवि कुमार दुबे
देखा था अहाते पर एक दिन,
एक बच्चा बैठा था रोटी के बिन।
दिल पसीज गया मन खीझ गया,
मैं उसकी हालत पूछा वो आंसुओं से भीग गया।
भूख से वो रहा था था तड़प,
ठंड भी थी बहुत कड़क।
वो भूखा था वो ठिठुरा था,
लेकिन वो मन का न बुरा था।
तन कुंठित था मन विस्मृत था,
इक रोटी उसके लिए अमृत था।
उसकी हालात देख मेरा मन भी बैठ रहा था।
भूख के मारे वो बेचारा ऐंठ रहा था।
मेरे मन मे विचार आया, क्यों ना इसका कुछ उद्धार करें।
भूख मिटा कर इसका पुण्य का कुछ कार्य करें।
एक कंबल दी, कुछ रोटी दी तब जाके हुआ वो शांत।
लेकिन मेरे दोस्तों कहानी का यहीं नही हुआ अंत।
मेरा मन आकुल था, अंतरआत्मा बहुत व्याकुल था।
'रवि' ये रहा था सोच, क्या ऐसे ही लोग भूखे रहते है रोज।
लेखक/साहित्यकार-
रवि कुमार दुबे
रेनुसागर, सोनभद्र- २३१२१८
मो- ८५७३००१६३०