रेखा शाह आरबी
एक दिन पीड़ाओ से उबकर
धरती पहाड़ बोलेगे
मत छेदो बेधो हमको
किंचित हृदय तब डोलेंगे
कितनी पीड़ाओ को झेले
बहती नदिया का पानी
नदिया से अधिक भर गया
उसकी आंखों में पानी
रो उठ आता हिमालय
अपनी दुर्दशाओ पर
बेधने का निसान दिख जाता
उसकी निश्चल कायाओ पर
बिलखेगे डालो पर पंछी
अपने जीवन के खातिर
मन् ना कभी सुन सका
अपने लालच के खातिर
धरती के वृक्ष भी एक दिन
अपना भाव बदल देंगे
पीत पत्रों का रुदन
अपना प्रभाव बदल देंगे
फिर ना दिखेंगे जीव जंतु
प्राकृतिक अभयारण्यों में
आंसू भर के छोड़ दिया है
तुमने आंखों में हिरणों के
जल जंतु जीवन पर तुमने
असंख्य है प्रहार किया
अंधाधुंध इस धरती का
सब ने ही संहार किया
धरती भी साहस खो चुकी
बिखरे को सवारने का
अब तो होगा जीवन संहार
समय गया अब तारने का
धरती की ममता को तुमने
तार-तार कर डाला
लाखों पाप करके मानुष
पूजते हो शिवाला
रेखा शाह आरबी
जिला बलिया उत्तर प्रदेश