वृक्ष अवश्य लगायें पर सिर्फ काग़जी या सामाजिक दिखावे के लिए नहीं बल्कि कहाँ कब व कैसे लगायें, इस पर विचार करते हुए लगायें? जैसे-मार्गों के किनारे छायादार और आक्सीजन देने वाले पीपल, बरगद और जामुन लगायें, वहीं प्रदूषित वातावरण में लाभकारी अमलतास, नीम, शीशम, बांस, पीपल, मौलश्री, आम, जामुन, अर्जुन, सागवान होते हैं। कूड़ा-कचरा वाली जमीन को उपयोगी बनाने हेतु, अर्जुन, गुलमोहर, सिरस, बबूल, अमलतास एवं कदम्ब होते हैं। ध्वनि प्रदूषण में सहायक पौधे अशोक, नीम, सिरस, पीपल, महुआ, इमली आदि होते हैं। गैसीय प्रदूषकों को रोकने में सहायक पौधे बेल, उलु, नीम, सिरस, पीपल, शीशम, महुआ, इमली आदि होते हैं। भूमि को सुधारने वाले पौधे- नीबू घास, पामरोज, खस, जावाघास, वेटीवर, सेट्रोनिला आदि शामिल हैं। उन पौधों की भी चर्चा करना चाहूँगी, जो सुगन्धित व औषधीय गुणों से भरपूर हैं जैसे- तुलसी, आंवला, बेल, करी पत्ता, रूद्राक्ष, चन्दन, नीम, हल्दी आदि हैं। पर ये जीवनदायी वृक्ष जो कभी सूबे की तराई में पश्चिम से लेकर पूरब तक पाए जाने वाले ‘बीजासाल’ के पेड़ अब ढूंढने पर भी नहीं मिलते। तराई के साथ उत्तर प्रदेश के मैदानी इलाकों में बड़ी संख्या में पाए जाने वाले ‘बालमखीर’ के दरख़्तों की संख्या पूर्व की अपेक्षा गिरावट पर है। वहीं प्रचुर मात्रा में पाए जाने वाले प्रजाति (वनस्पति) ‘कलिहार’ अब दुर्लभ है। इसी प्रकार कुछ अच्छे अन्य पौधे जैसे-कोरलट्री, बेसबाॅल प्लांट, दर्लभ आर्चिड आदि पेड़ अब समाप्ति की कगार पर हैं क्योंकि प्रकृति पर विजय पाने की मानव की चाह के कारण, वन सम्पदा दो तरफा खतरे में हैं। एक औद्योगिक, दूसरे ग्लोबल वार्मिंग के कारण, जंगलों का तेजी से दोहन के कारण उन स्थानों को भी पाटा जा रहा है, जो सिर्फ हरियाली के लिए रिक्त होने चाहिएँ जबकि सृष्टि विकास के क्रम में मानव केवल एक सहउत्पाद या ‘बायप्रोडक्ट’ भर है फिर भी प्रकृति के अनमोल उपहारों से उसका सान्निध्य कितना व कैसे हो। ये विचारणीय बिन्दू तो हैं हीं???
रश्मि अग्रवाल
नजीबाबाद
9837028700