ये जो मन है
ये जो मन है ना
बहुत कुछ कहना
चाहता है .
नारी का मन करता है
बहुत बार की वो
आकाश मैं उड़े ,
पर्वत पर चढ़ें ,
समुद्र में तैरे .
पर ये जो मन है ना
ठहर जाता है हर बार
कभी पिता से डरकर ,
कभी भाई का अंकुश ,
कभी पति की बेड़ियाँ ,
और बहुत बार
समाज से डरकर .
21 वीं सदी लेकर आई है
नया हौसला नई उड़ान
आज नारी चल रही है
पर्वत नाप रही है
उड़ा रही है जहाज.
शिक्षा से आई है
नई ताकत उसमें
तोड़ रही है बेडिया
उड़ रही है मुक्त गगन में
सपनों के पंख फैला
नाप रही है वह
पूरा जहाँ !!
रंग बदलती जिंदगी
ये जिंदगी
अजब पहेली है,
जाने अनजाने
अजब रंग दिखलाती है ।
सुख दुख
की आँख मिचौली,
कभी हँसाती,
कभी रुलाती है ।
अपने परायों
से मिलाती, कभी बिछड़ाती,
चेहरों के पीछे
छुपे चेहरे दिखलाती है।
कभी मस्ती
में रंगती,
कभी रिश्तो में उलझाती,
जिंदगी अजब रंग दिखलाती है ।
कभी सच,
कभी झूठ,
कभी कर्तव्य का
पाठ पढ़ाती है ।
पल पल
रंग बदलती,
इंद्रधनुषी है जिंदगी,
अजब रंग दिखलाती है ।
नीलम राकेश
neelamrakeshchandra@gmail.com