मैं .....


डा0 रजनी रंजन 

कईबार वार किया उसने

आत्मबल को कमजोर  किया

फिर साहस ने उठाया

और धैर्य ने सहनशक्ति दी

चोट पर चोट

वार पर वार

पराकाष्ठा थी अब

सहनशक्ति टूट गयी,

 पर साहस अब भी था

मन के कोने में कहीं 

भले ही दुबका हुआ,

उठ खड़ा हुआ

आओ अब!

मजबूत कंधे पर 

नाना जिम्मेदारी निभाती हूँ 

घर बाहर दोनों  संभालती हूँ 

तुम क्या हो?

तुम्हें भी संभाल लूंगी

सारे भेद मिटा दूंगी 

पुरुषार्थ पर नारीत्व का बल

कौन नहीं  जानता!

मैं  हूँ तो तुम हो

मैं  रहूँगी तो तुम्हारी परछाईं रहेगी

वरना मेरे खत्म होते ही

सब खत्म हो जाएगा ।


डा0 रजनी रंजन 

घाटशिला, झारखंड ।

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