पिता

प्रो(डॉ)शरद नारायण खरे

जिसका जीवन संघर्षों की,प्रखर एक गाथा है।

सचमुच में उस पिता के आगे,झुक जाता माथा है।।


संतानों के जीवन में जो,

बिखराता उजियारा

रक्षक बनकर पहरा देता,

दूर करे अँधियारा

वह रचना करता संतति की,जनक कहाता है।

सचमुच में उस पिता के आगे,झुक जाता माथा है।।


निज सुख त्याग,काम करता है,

करता गृह की रचना

हर मुश्किल से जो भिड़ जाता,

करता सुख की सृजना

माता जैसा अभिनंदन पर,जो ना पाता है।

सचमुच में उस पिता के आगे,झुक जाता माथा है।।


सारा जीवन,सूरज जैसा,

हरदम जो है तपता

सकल दिव्यता दे जो गृह को,

कर्ममाल है जपता

निज संतति के जीवनपथ पर, फूल बिछाता है।

 सचमुच में उस पिता के आगे,झुक जाता माथा है।।

                  -प्रो(डॉ)शरद नारायण खरे

                            मंडला(मप्र)

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