मन पाके ना ए बबुआ,खेआल रखिहऽ

  


ऋषि तिवारी "ज्योति"

रोटी पाकता तऽ पाके दऽ,

धेआन रखिहऽ ।

मन पाके ना ए बबुआ,

खेआल रखिहऽ ।

मन पाके ना ए बबुआ,

खेआल रखिहऽ ।।


पेट के जरले बाहरा गईलऽ,

हमहूं जानऽतानी,

करम के फूटले दूर हो गईलऽ,

हमहूं जानऽतानी,

रोंआं टूटे ना शरीर केऽ,

धेआन रखिहऽ,

मन पाके ना ए बबुआ,

खेआल रखिहऽ ।।


रतिया रतिया जागि जागि के,

लोरवा पोछत रहनी,

तकिया भींजे गमछा भींजे,

जब हम रोअत रहनी,

लोर बहे नाहीं केहू केऽ,

ईयाद रखिहऽ ।

मन पाके ना ए बबुआ,

खेआल रखिहऽ ।।


भाई बहिन के साथे साथे,

हमरो मन हरसवलऽ,

सूखल धरती पर जईसे तू,

बरखा का बरसवलऽ,

फेरू सूखेना जमीऽऽन,

तू धेआन रखिहऽ।

मन पाके ना ए बबुआ,

खेआल रखिहऽ ।।


रोटी पाकता तऽ पाके दऽ,

धेआन रखिहऽ ।

मन पाके ना ए बबुआ,

खेआल रखिहऽ ।

मन पाके ना ए बबुआ,

खेआल रखिहऽ ।।


ऋषि तिवारी "ज्योति"

चकरी, दरौली, सिवान (बिहार)

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