बलात्कारी
काश तू आदमी कोई अंजान होता
इंसानियत का दामन न लहूलुहान होता
परिवार और रिश्तों पर उसकी माँ को था भरोसा
शायद इसीलिए उसको मिला तुझसे धोखा
सात साल की बच्ची पर डाली बुरी नज़र
उसकी माँ क्यों छोड़ गई बच्ची को तेरे घर
तन ही नही मन भी बच्ची का तूने नोंचा
कैसा हवस में अँधा इक पल भी तू न सोचा
कुछ क्षण के सुख के ख़ातिर तू बन गया दरिंदा
पैदा होते ही मर जाता अरे क्यूं रहा तू ज़िंदा
वो नन्हा दिल रिश्तों पर भरोसा न कर पायेगा
हर आदमी में उसको बलात्कारी नज़र आएगा
नशामुक्ति–दृढ़संकल्प जरूरी है
ओ आज के युवा,माँ के लाड़ले,
तुम पिता का हो अभिमान,
नशे की लत में पड़कर कुल का,
क्यूं मिटा रहे हो मान।
करो न तुम यूं सुरा का सेवन,
इससे दुष्कर होता जीवन,
मय के प्यालों में न डुबाओ,
देश का तुम सम्मान।
नशे की लत में पड़कर कुल का,
क्यूं मिटा रहे हो मान।
छोड़ो तम्बाकू, सिगरेट, बीड़ी,
ये सब तो हैं मौत की सीढ़ी,
चंद पलों का सुख पर,
भूलो न इसका दुष्परिणाम।
नशे की लत में पड़कर कुल का,
क्यूं मिटा रहे हो मान।
अब जाग उठो, ये आदत बुरी है,
नशामुक्ति के लिए दृढ़संकल्प जरूरी है,
परिवार के प्रेम-विश्वास से जीतोगे,
नव जीवन का ये संग्राम।
नशे की लत में पड़कर कुल का,
क्यूं मिटा रहे हो मान।
एहसास
ये जो चाँदनी बिखरी है मेरे आंगन मे
ऐसा लगता तू खिल के मुस्कुराई है
होके बेचैन मैंने चाँद को देखा तो
उसमें सूरत तेरी ही नज़र आई है
जब कभी बारिशों की रिमझिम हो
मुझे लगता तू हर बूंद में समाई है
सौंधी मिट्टी सी जान यादें तेरी
दूर रहकर भी मेरी सांसों को महकाई है
कोई मीठी धुन सी तू लगती
जिसे ये ज़िंदगी मेरी गुनगुनाई है
जिसे सुनना चाहता हूँ हर पल मैं
तू वो शायरी है तू ही वो रुबाई है
अंधेरी रातों मे भी चिरागों की तरह
तेरी चाहत ने रोशनी बिखराई है
तन्हा होकर भी तन्हा न कभी होता मैं
तू संग रहती यूं जैसे मेरी परछाई है।
"गरम गरम रोटियां"
माँ तुम्हारे हाथ की
तवे से उतरी रोटी
बहुत याद आती है
अब मैं सबको खिलाती हूँ
गरम गरम रोटियां
पर मेरे खाने के समय पर
ठंडी हो जाती है
वही गरम गरम रोटियां
पर जब भी आती हूँ मायके
तुम और भाभी खिलाती हो
बड़ी प्यार-मनुहार से मुझे
तवे से उतरी रोटियां
कई वर्ष बीते,
अब तो चाह भी नही रही
तवे की उतरी रोटी की
पर यह क्या हुआ अचानक आज
मुझे ससुराल में भी मिलने लगी
गरमा गरम रोटियां
हाँ माँ, अब बड़ी हो रही हैं न मेरी बेटियां
इसीलिए परोसती हैं मुझे वो
मेरी पसंद की गरम गरम
तवे से उतरी रोटियां
✍️प्रीति ताम्रकार
जबलपुर