डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव
फुर्सत के पल में खुदा ने आप को बनाया होगा,
तेरे अंग अंग को वो बड़े प्यार से सजाया होगा।
लगो जिससे धरती पर तुम जन्नत की हूर जैसी,
यही सोच मालिक ने छोड़ी ना कमी कोई ऐसी।
होंठों की लाली लगे जैसे कोई गुलाबी कली है,
मुस्कुराने पे लगती हो जैसे अधखिली कली है।
मृगनयनी चितवन गजब की ये तुम्हारी प्रिये हैं,
तुम्हीं हो जिसे देख कर हम अभी तक जिये हैं।
जुल्फें जैसे घटा कोई काली जो मदहोश कर दें,
सावन का मौसम कहे आओ आग़ोश में भर लें।
करूँ प्यार जी भर के जन्मों जन्मों फलक तक,
बुझे ना कभी प्यास बुझाने से कोई हलक तक।
निहारूँ तुम्हें केवल तुम्हें साँस ये जब तक चले,
मिली तू मुझे जो किस्मत है मेरी कोई ना जले।
न जोड़ कोई हमारा तुम्हारा,खुदा का फ़जल है,
जो प्रेमियों को मिलाये हमेशा वही तो सबल है।
चलो दोनों मिलकर लिखें एक सुन्दर ये कहानी,
न हो उम्र का कोई बंधन जवानी नई या पुरानी।
रखे याद दुनिया तेरी मेरी यह गजब की कहानी,
मुहब्बत कभी भी हो हरेक उमर होती है सुहानी।
रचयिता :
*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
(शिक्षक,कवि,लेखक,समीक्षक एवं समाजसेवी)
इंटरनेशनल एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर,नार्थ इंडिया
2020-21,एलायन्स क्लब्स इंटरनेशनल,प.बंगाल
संपर्क : 9415350596