स्त्री जीवन

दीपिका चौहान,

स्वतंत्र है परन्तु अभिमान कर नहीं सकती,

सुलग उसमें भी है परन्तु दहक नहीं सकती।

राह अनेक हैं पर चलने की क्षमता लोगों के तुच्छ मानसिकता के कारण परे है,

बुलंद है उसकी आवाज, पर विरोध किसी के करने का आदेश नहीं है।

उसके हिस्से में भी प्रश्न अनेक है बावजूद इसके वह पूंछ नहीं सकती,

स्वतंत्र है परन्तु अभिमान कर नहीं सकती।

दुनिया के बंधनों की बेड़ियों ने जकड़ा है उसके चरणों को,

घिन आती है कभी इस भरे स्त्री शोषण के आलम को।

कहता है मन वो उसका,

कितना गुनाह किया है उसने उस रोकने वाले पतंग का?

टुकड़े हुए हैं उसके अभिमान स्वरूपी अंग का ।

करता है मन भी उसका बदलाव करे उस घृणित मानसिकता का परन्तु कर नहीं सकती।

समाज नहीं है उसका हितकारी वह आगे बढ़ नहीं सकती।।

जीती है परन्तु जीवन नहीं,

खाती है परन्तु अन्न नहीं,

अरे! किंतु गौर फ़रमाइये लड़की है परन्तु लड़कों से कम नहीं।।

दीपिका चौहान,

जशपुर, छत्तीसगढ़।।

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