अतुल पाठक " धैर्य "
मदहोश धड़कन जिया बेक़रार,
प्यार की बरसात की पहली है फुहार।
भीगना चाहते हैं तन और मन,
छाया है प्यार का मौसम आई बहार।
प्रेमी हुए बावरे गाए गीत और मल्हार,
देखो आँखों में छलका है बेशुमार ख़ुमार।
आंखों ही आंखों में खोने लगे हम,
एक दूजे के दिल में रहने लगे हम।
मादक नैन मेहबूबा से लड़ने लगे जब,
मेहबूबा का दिल भी बहकने लगे तब।
दीदार से रूह को चैन मिलने लगे तब,
बन्दगी जिनकी ज़िन्दगी बनने लगे जब।
भावनाएं मन की क़ुरबत आने लगे जब,
एहसास दिल को दिलाने लगे तब।
रचनाकार-अतुल पाठक " धैर्य "
पता-जनपद हाथरस(उत्तर प्रदेश)
मौलिक/स्वरचित