टूटता दांपत्य, बिखरता परिवार बढ़ता तलाक !

प्रज्ञा पांडेय

 अंतर्मन में एकाकीपन,  रिश्तों में खालीपन, संबंधों में बासीपन  आज यह हर तीसरे विवाहित जोड़े की कहानी हो गई है।कभी सोचा ऐसा क्यों है? रिश्तो की वो ताजगी जाने कहां चली गई है। हर रिश्ते में से उष्णता मानो  गायब सी होती जा रही है। लोग दांपत्य को जी नहीं रहे हैं बल्कि  ढो रहे हैं मानो यह कोई रोग है जो लाइलाज है । या कोई अनचाहा बोझ है, जिसे उतार फेंकने का कोई विकल्प मौजूद नहीं है सिवाय तलाक के। 


तथाकथित आधुनिक समाज में यह   ज्यादा देखने को मिलता है। इस विषय पर थोड़ा अध्ययन किया जाए यह बात निकल कर सामने आती है  कि वर्तमान परिपेक्ष में हम अंतर्मुखी और  एकाकी होते जा रहे हैं। घर पर जीवनसाथी या जीवनसंगिनी से कुछ भी साझा नहीं करते ।बल्कि वर्चुअल दुनिया में अंतरजाल, पर सोशल मीडिया पर अपने तथाकथित मित्रों से सब कुछ साझा करें करना चाहते हैं। हम अपने वास्तविक जीवन साथी को इग्नोर करते हैं उसकी की हुई चेष्टा को अनदेखा करते हैं ।एक आभासी दुनिया में सुख की प्राप्ति संभावना तलाशते हैं।  यह तलाश मृग मरीचिका के अतिरिक्त कुछ भी नहीं।


बढ़ते तलाक का एक और पहलू है बदलते परिवेश में महिला हो या पुरुष, दोनों में ही आर्थिक स्वावलंबन की चाह विस्तृत होने लगी है. इसके परिणामस्वरूप भले ही परिवारों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ हो, लेकिन इस बात को कतई नकारा नहीं जा सकता कि आर्थिक स्वतंत्रता की बढ़ती चाहत कई परिवारों के विघटित होने का भी कारण बनी है. जहां पहले आजीविका कमाने का क्षेत्र केवल पुरुषों तक ही सीमित था और  महिलाएं केवल घर में ही रहती थे, वहीं आज पति-पत्नी दोनों ही अपनी गृहस्थी को आर्थिक समर्थन दे रहे हैं. इस वजह से वे दोनों ही इतने व्यस्त हो चुके हैं कि उनके पास न तो एक-दूसरे के लिए ही समय बचता है और न ही अपने परिवार के लिए साथ ही दोनों की पारस्परिक निर्भरता भी कम होने लगी है. चाहे न चाहे उन्हें अपना संबंध विच्छेद करना ही पड़ता है.

एकल परिवारों में पति पत्नी दोनों के नौकरीपेशा होने की वजह से एक-दूसरे के लिए समय की कमी, बढ़ती असहिष्णुता, अहं का टकराव और कई मामलों में विवाहेत्तर संबंध इसकी प्रमुख वजह हैं. कई मामलों में पति पत्नी के बीच बढ़ते मतभेदों में दूर रहने वाले परिजन और करीबी लोग भी आग में घी डालने का काम करते हैं.

यहां यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि यदि आप को कोई अन्य व्यक्ति  जो की आप का वर्चुअल मित्र है जिसे आप कुछ समय तक ही मिलते हो पसन्द आ रहा है तो फिर आप को अपने वास्तविक जीवन साथी में बस कमियां ही दिखेंगी।


युवावस्था की दहलीज पर कदम रखते ही देखा जाने वाला सबसे स्वर्णिम स्वप्न शायद विवाह का ही होता है। हर व्यक्ति एक मनचाहे जीवन साथी के साथ परिणय  के बंधन में बंधना चाहता है। वर्तमान समय में यदि शत-प्रतिशत नहीं तो कम से कम 75% विवाह में लड़के और लड़की की सहमति, स्वीकृति के बाद ही विवाह संपन्न किए जाते हैं।


और उसी अनुपात में शत प्रतिशत नहीं तो 100 में से 75 प्रतिशत लोग अपने वैवाहिक जीवन में खुश नहीं होते ऐसा क्यों ? इसका कारण क्या है? क्यों इतनी खोजबीन या एक दूसरे को भली प्रकार समझने के बाद हुए विवाह की परिणिति भी कुछ समय पश्चात अच्छी नहीं रह जाती। 


और अब तो परिस्थितियां इतनी भयावह हो रही हैं कि लोगों का विवाह संस्था में से विश्वास ही उठता जा रहा है। उन्हें ऐसा लगने लगा है की एक बार यदि इस बंधन में बंध गए तो फिर बचने का कोई उपाय नहीं है। यहां शब्दों पर गौर करने की आवश्यकता है लोग विवाह संस्कार को अब बंधन मानने लगे हैं और कहने की आवश्यकता नहीं की बंधन किसी को भी पसंद नहीं होता।  हर व्यक्ति अपनी वैयक्तिक आजादी खोना नहीं चाहता। या यूं कहें अपने जीवनसाथी के पसंद के अनुसार खुद को परिवर्तित नहीं करना चाहता अथवा उसे पता ही नहीं होता की उसकी कौन सी बात उसके साथी को पसंद है और कौन सी बात ना पसंद है। कारण संवाद हीनता।


व्यक्तिगत रूप से यदि देखें तो प्रत्येक व्यक्ति की अपनी एक अलग कहानी होगी, अपना एक व्यक्तिगत कारण होगा जिस वजह से वह अपने विवाह , दांपत्य जीवन से खुश नहीं होगा। किंतु अगर समग्र दृष्टि से इसे एक सामाजिक प्रश्न समझ कर इसकी विवेचना की जाए तो इसके मूल में एक ही प्रश्न निकल कर आता है। और वह यह है कि हम एक दूसरे को समझ नहीं पाते या दूसरे शब्दों में कहें तो एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान नहीं करते एक संवाद हीनता की स्थिति ने संबंधों की उष्णता समाप्त कर दी है।

 कुछ मूल कारण भी है इसके ,  हम मानव है। हम  जन्म  से ही भावनापूर्ण जीवन जीने के लिए बने हुए हैं लेकिन हम दिन प्रतिदिन पाषाण पिंड बनते जा रहे हैं। और हम व्यक्ति प्रधान ना होकर वस्तु प्रधान हो गए हैं । दोस्ती  और संबंध किसी के व्यक्तिगत गुणों को देख कर नही  बल्कि उसके सामाजिक आर्थिक  स्तर को देख कर करते है फल स्वरूप हमें को वो खुशी नही मिलती जो मिलनी चाहिए। और ऐसे ही मृग मरीचिका में हर व्यक्ति आज खुद को निराश हताश और  एकाकी पाता है। हमारे रिश्तो में से संवाद गायब हो रहे हैं और तकरार बढ़ रही है हम अपने आप में सिमट ते जा रहे हैं और अपने जीवनसाथी से मानसिक दूरी की तरफ धीरे धीरे बढ़ रहे हैं और यही संवाद हीनता वैचारिक दूरी धीरे धीरे विस्तृत होती जाती है। और हम अपने संबंधों को पूर्णतया समाप्त कर देना ही उचित समझते हैं ।क्योंकि हम साथ होकर भी साथ नहीं रहते। मुझे कहने में कोई गुरेज नहीं कितने ही परिवार ऐसे हैं जिनमें एक ही छत के नीचे रहते हुए भी पति पत्नी एक दूसरे से संवाद के स्तर पर कोसों दूर है। अपने आप में सिमटे हुए हैं। साथ को सहर्ष आनंदित साहचर्य या सुखद अवसर ना मानकर बल्कि उसे एक बोझ समझ कर उससे छुटकारा  पाने का प्रयत्न कर रहे हैं।


 लेकिन तलाक लेना या संबंध विच्छेद कर लेना मेरी समझ से कोई बहुत अच्छा उपाय नहीं है। यहां मैं यह नहीं कहती कि संबंध कैसे भी हैं उन्हें तोड़ा ना जाए बल्कि यह कहती हूं की दरारों को भरा जाए टूटने के कगार पर आ रहे संबंधों को संवादों की सीमेंट से जोड़ा जाए। एक दूसरे की भावनाओं को समझ कर रिश्तो की फटी हुई सिलाई की फिर से तुरपाई करें।


शायद तलाक की नौबत नहीं आएगी। क्योंकि इस बात कि कोई गारंटी नहीं है एक विवाह असफल होने के बाद दूसरे विवाह मैं आप सफल होंगे। अगर आप अपने दृष्टिकोण और व्यवहार को नहीं बदलेंगे तो परिणाम बदले हुए कैसे हो सकते हैं? और अगर व्यवहार नजरिया बदल ले तो शायद तलाक लेकर पुनर्विवाह की नौबत ही ना आए।अपने जीवन साथी को समझें परखे नही।

उसे अपना साथ दे। और सब से बड़ी बात है कि आप अपनी बातों को कहे । किसी भी व्यक्ति या वस्तु की कीमत हासिल करने के बाद कम हो जाती है तो बस यह गलती ना करें हो सकता आपका जीवन साथी सामाजिक दबाव के कारण आपसे तलाक भले ही ना ले रहा  हो किंतु वह मन ही मन आप से दूर होता जाता है। उन्हें हमेशा इस बात का एहसास कराएं की उनकी आपके जीवन मैं क्या अहमियत है। उनका होना आपकी जिंदगी में क्या मायने रखता है। और संवाद का पुल कभी टूटने ना दें । फिर आप देखेंगे कि आप के दांपत्य की नदी में कभी कोई सुनामी नहीं आएगी। धैर्य का बांध आप के दांपत्य में कभी कभार आने वाली बाढ़ को रोक देगा।

कुछ पंक्तियां मैं मैंने रिश्तो को समझाने की कोशिश की है


कुछ ऐसा अपने रिश्ते का स्वरूप हो,

मैं बन जाऊं अभिव्यक्ति तुम्हारी,

तुम मेरा अस्तित्व बनो।


तुमसे हो पहचान हमारी,

मुझसे हो सम्मान तुम्हारा,

पीयूष धार सदा बहे बीच हमारे,

हो अटूट संबंध हमारा।


मैं  समझूं हर भाव तुम्हारे ,

तुम मेरी हर मौन सुनो,

मैं बन जाऊं अभिव्यक्ति तुम्हारी,

तुम मेरा अस्तित्व बनो।


प्रज्ञा पांडेय

वापी गुजरात

pragyapandey1975@gmail.com

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