वो एक लम्हा
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किसी की नजर को गँवारा नहीं जो
उसे ही दिल में बसाया है हमने
खुश्बू की तरह खुल के प्यार निभाया
दर्द से खुद जा के, हाथ मिलाया हमने।
मचलते जज्बातों को, न पहुँचे ठेस एसे,
ये भरोसा एक दूजे को दिलाया हमने।
तमाम उम्र तुमको , भूल पाना हो मुश्किल,
वो एक लम्हा जो, साथ तेरे बिताया हमने।
रूठकर भी भला, हासिल कुछ होता है,
वादा दोस्ती का, यूँ भी निभाया हमने।
बेचैन रातो की गुफ्तगु ना भूल पायेंगे कभी
चुपचाप चले जाना भी अपनाया हमने।
बेदर्द जमाना हमें कभी मिलने नहीं देगा,
जहर जुदाई एक दूसरे को, पिलाया हमने।
सामने ना सही, रूह से तो साथ है दोनों
जश् ऐ - मुहब्बत भरपूर मनाया हमने
मुनासिब तरीका
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दिल नें फिर पूछा
इतना उदास क्यूं है
खूबसूरत से नैनो मे
खामोश सी प्यास क्यूं है
क्यूं ढूढ रहे हो उसे इधर उधर
जिसके पास आपके लिए वक्त नहीं है
मैनें भी दिल को बहलाया
हौले से मासूम को सहलाया
जख्म देने वाला बहुत खास होता है
सिर्फ उसे ही मालूम दर्द का हाल होता है
एक वही है जो चोट वाजिब जगह करता है
वार करने का तरीका मुनासिब चुनता है
कत्ल कॉटे से नहीं वो गुलाब से करता है
दिल के तार तार में नश्तर चुभाता है
वो बेदर्द बेमुरव्वत बेदिल बेसाख्ता होकर
जिन्दा रखकर ही, यार को सजा सुनाता है
यादे यूँ भी पुरानी चली आईं
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मन की बाते बताये तुम्हें क्या
है ये पहली मुहब्बत हमारी
भले दिन थे वो गुजरे जमाने
मीठी मीठी सी अग्न लगाई
हम तो डरते हैं नजदीक आके
जान ले लो - ऐ जान हमारी
कब से बैठे दबाये लबो को
कब से यारी है गम से हमारी
चढगयी सर आसमाँ तक
ये नशीली रात खुमारी
बजते घुघरू से आवाज आई
देखो कैसी चली पुरवाई
खाली लौटे हैं तेरे जहाँ से
तुने कैसी ये लहरे जगाई
मुस्कुराते हो क्यूं ,कहो तो
जैसे ठण्डी चले पुरवाई
दिल में करती हैं हलचल हमेशा
जैसे पहली नजर की जुदाई
आग पानी में अब तो लगी है
नजरे नजरों से जब भी मिलाई
आकर बैठे सुकून से यहाँ हम
जैसे खुद की ही बगिया जलाई
तारे खोने लगे रौशनी सब
धरती चंदा से मिलने आई
बाँध लो हमको अपनी ख़िजा में
खोल दो ये पायल हमारी
आँखे देने लगी आज धोखा
यादे यूँ भी पुरानी चली आई
स्वागतम्
भीतर आ रहे हो
तो आ जाओ
तमन्नाओं की गठरी
क्यों संग ला रहे हो
गम भीतर तक
हलचल मचायेगा
तेरी मुस्कुराहट को
दबायेगा
इसीलिए तेरा अहंकार
तेरा अभिमान तू
बाहर ही छोड़ आना
मेरे घर के भीतर तू
पंछी बनकर आना
जब ना मन पर कोई बोझ होगा
तू भी इंसान के वेश में
फकीर होगा
तेरा अंदाज तेरी मस्ती ही
तुझे लुभायेगी
पाप की गठरी
बाहर ही छूट जाएगी
यह जिंदगी रेत समंदर
सब बेमानी है
अहंकार तुझमे जिंदा है
तू अभिमानी है
पवन के झोंके से
तू हिल जाएगा
अग्नि की लपटों में
जलकर मिट्टी हो जाएगा
इस शामियाने के अंदर
झुलस के रह जाएगा
अरे अपनों का दिया जहर
कब तक पीता जाएगा
पांव पर लिपटी
घमंड की धूल
तू पायदान पर ही
झाड़ देना
परोपकारिता का दामन पकड़
निष्ठुरता को झटक देना
अपनेपन की सुंदर झालर
दरवाजे पर टांग देना
और भीतर आ रहे हो
तो आ जाओ मगर
तमन्नाओं की गठरी
बाहर ही छोड आओ
अनोखी झडप
हास्य रचना
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सुबह सुबह ही पडोसी से
झडप हुई अलबेली
मैं खुद को ,खुद की नजर में, खुद ही,
दु नियाँ की ,सबसे खूबसूरत, महिला लगी
उसने हमें देख आँख मिचमिचाई
कुछ ही देर मे तालियाँ भी बजाई
हमने भी एक करारी धौल जमाई
पडोसी युवाओं की टोली बुलवाई
खूब काटा हल्ला
करी जग हसाई
पडौसी के आँख मिचमिचाने
पर थोड़ा सा लजाई
बुढ्ढे होकर छेड रहे हो
आँख दबाकर टेर रहे हो
शर्म हया लाज बेच खाये हो
हम को ताली बजाकर बुला रहे हो
पडोसी युवाओ ने अपना फर्ज निभाया
खूब जमकर बुढ्ढे मजनू को धोया
इश्क का प्रेम अभी उतरा भी ना था
हमें देख कुछ अजीब मुद्रा में बोला
तुझे गलतफहमी है बहना
पहली बात तो मैं कर रहा था योगासन
दूजे तू खुद अपनी सूरत पे तरस खा
तेरे जैसी पर भी कोई
आँख मार सकता है
यह संशय मन में मत ला
जिसे देख उस का खुद का ही
आदमी भाग जाता है
उस रिटायर्ड पीस पर
हमारी नजर फिसलेगी
एसा ख्याल भी मन में मत ला
जा बहन जा
जा बहन जा
थोड़ी थोडी सी मीरा होने लगी
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अश्क आँखो मे लेकर के बैठे हो म्यू
दरीया सागर में जाकर मिलाते हो क्यूं
हमतो मर ही गये इक मुस्कान से
तीर बातो के हमपर चला ते हो क्यू
एसे बीती उमरिया खबर ना हुई
आई ऋतु ये सुहानी में शरमा गई
मनभी प्यासा रहा तन भी प्यासा रहा
जैसे मृग में छिपी भीनी कस्तूरी
सारे मौसम भी देखो महकने लगे
पंछी मीठीसी बोली में गाने लगे
हमभी तडपे यह तुम भी तडपो वहाँ
दो दिलो की कहानी सुनने लगे
रात जुगुनू सी है या चमक चाँदनी
प्रेम राधा सा है या मीरा सी कहानी
थोड़ी थोडी सी उलझन बढ़ने लगी
प्रीत श्यामा की धडकन में बसने लगी
शम्मा धीमी हुई रात ढलने लगी
ये मुहब्बत भी सर पर चढ़ने लगी
जब से डूबी हूँ तेरी मुहब्बत में मैं
थोडी थोडी सी मीरा होने लगी
कोरोना वेरियर्स
सफाई कर्मचारी
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हर सर झुक रहा आज
ये मन्दिर नहीं कोई
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नदिया समा गई जिसमें
समन्दर नहीं कोई
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नजरो में कृतज्ञता
लबो पे दुआऐं बेहिसाब
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साधारण निस्वार्थ सेवक
सफाई कर्मचारी है यह
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कोई काम इन बिन
आज सम्भव ही नही
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निडर बेखौफ से लीन
बहुत करीब हैं यही
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न होते पास विषम वक्त में ये
बेमौत ही मर जाते सभी
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हाथ उठते सजदे में तुम्हारे लिए
जियो हजार बरस इबादत है यही
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मिसाल मानवता की यूहीं कायम रखना
सालोसाल जज्बा सलामत रखना
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कर्मचारी नहीं सखा मित्र बने हो
मानव जन्म सार्थक किया है यहीं
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जीवन तुमपर न्यौछावर हो तो कम है
तुम्हारे कर्म को हमारा सादर नमन है
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डॉ अलका अरोडा
प्रोफेसर - देहरादून