प्रीति ताम्रकार
मन में बचपन की यादें सब ताजा हैं होती
आज भी जब गर्मी की छुट्टियां हैं होती
मामा मामी का लाड़ और नानी की कहानी है होती
मन में बचपन की यादें सब ताजा हैं होती
मां के पास मामाजी की चिट्ठी आती थी
कि अमुक तारीख को आएंगे लिवाने
तुम कर लेना तैयारी
बस से उतरते ही, तांगे में बैठने की जल्दी थी होती
मन में बचपन की यादें सब ताजा हैं होती
आज भी जब गर्मी की छुट्टियां हैं होती
कभी अश्टेचंगे की कौड़ी खेलते
तो कभी राजा,मंत्री,चोर,सिपाही,
कभी ताश के पत्तों की बाज़ी थी होती
मन में बचपन की यादें सब ताजा हैं होती
आज भी जब गर्मी की छुट्टियां हैं होती
शाम को भैया दीदी संग, मेले को जाना
ऊँचे झूले पर बैठके डर से चिल्लाना
हर शाम नर्मदाजी के घाट पर ही थी बीता करती
मन में बचपन की यादें सब ताजा हैं होती
आज भी जब गर्मी की छुट्टियां हैं होती
रात में छत पर खुली हवा में बिस्तर होते थे
गद्दे बिछाके सारे सब साथ मे सोते थे
कभी चिढ़ाना,कभी लड़ाई,कभी मस्ती थी होती
मन में बचपन की यादें सब ताजा हैं होती
आज भी जब गर्मी की छुट्टियां हैं होती
–प्रीति ताम्रकार
जबलपुर(म.प्र.)