विक्रांत राजपूत चम्बली
केवल वृक्ष नहीं वटवृक्ष हो तुम।
जिस की शाखा मैं वह वृक्ष हो तुम।।
तुमने कितने नाजों से हमको पाला है।
जब हम टूटे तुम्हीं ने हमें संभाला है।।
जब घर से अकेले निकले थे तब भी तेरा साया था।
जब पड़ी विपत्ति हम पर तब तुम ही ने संभाला था।।
तुम्ही ने बचपन में मेरा पहला कदम उठाया था।
मैं भी कुछ हूं इस दुनिया में यह एहसास कराया था।।
मेरे अस्तित्व की खातिर तुम दुनिया से लड़ते हो।
मुझ पर कुछ भी आँच न आए हर पल इससे डरते हो।।
जब भी कोई कष्ट पड़े ढांढस तुम्ही बधाते हो।
उस विपदा से पार निकलना तुम्ही तो सिखलाते हो।।
मेरे भविष्य निर्माण की खातिर सब कुछ वार दिया तुमने।
इस दुनिया में मेरे लिए ही सब कुछ हार दिया तुमने।।
मैं अंशु तुम्हारा हूँ इसको कोई झुठला नहीं सकता।
मैं कभी तुम्हारे इस ऋण को चुका नहीं सकता।।
नाम - विक्रांत राजपूत चम्बली
पता - ग्वालियर (मध्य प्रदेश)
ईमेल पता - ndlodhi2@yahoo.com
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