रिमझिम बारिश की बूंदे
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है मुझको भाती ये रिमझिम ,
मन को हर्षाती ये रिमझिम।
भीगूं उसकी बूंदों से जब मैं,
उस पल मुस्काती ये रिमझिम।
पड़ती जिस पर भी उसको ,
स्वच्छ कर जाती ये रिमझिम।
रूप उसका वास्तविक सा ,
उस पल दर्शाती ये रिमझिम ।
काली घटाओं संग उमड़े से ,
बदल लाती ये रिमझिम ।
दे स्पर्श शीतल सा उस पल ,
दिल को छू जाती ये रिमझिम।
टिप टिप बूंदो की ध्वनि से,
कोई राग सुनाती ये रिमझिम।
मधुर से उन स्वरों से ,
दिल खुश कर जाती ये रिमझिम।
बैठ घरों में कभी भी मुझको ,
न भाती है ये रिमझिम ।
बूंदों की टिप-टिप से अक्सर ,
पास बुलाती है रिमझिम ।।
अतीत की आवाज
खिलता बचपन देखूंँ तो ,
मन मेरा भी भर माता है ।
मन के किसी कोने से ,
अतीत आवाज सी दे जाता है।
देख के मुझको गुमसुम अक्सर ,
वो मुझ पर मुस्काता है ।
मेरी अल्हड़ बातों को वो,
अक्सर याद दिलाता है ।
छूना चाहूँ उसको तो झट से,
वो भी गुम हो जाता है।
अक्सर वो आकर ख्वाबों,
मुझको गले लगाता है ।
बैठ संग वो उस पल मेरे ,
बीती बातें दोहराता है।
हाथ पकड़ कर मेरा वो फिर,
अतीत में ले जाता है ।
बीता जहांँ था बचपन मेरा,
उन गलियों से मिलवाता है।
भूल जो बचपन मेरा उस
बचपन की याद दिलाता है।।
भजन
श्री कृष्ण जी
मुझे दरस दिखा जा ओ रघुवर,
तेरी राह निहारु खड़ी-खड़ी ।
चुन पुष्प मैं लाई बगियन से,
अर्पण करने को घड़ी-घड़ी ।
तेरे धाम था मुझको आना तो,
मैं मांँ बाबा सबसे थी लड़ी।
मुझे दरस दिखा जा ओ रघुवर,
तेरी राह निहारे खड़ी-खड़ी ।
मन और कहीं ना लागे अब ,
मुझको तो आना वृंदावन।
तेरी भक्ति में रम जाना है ,
अब तो बन जोगन घड़ी- घड़ी।
मुझे दरस दिखा जा ओ रघुवर,
तेरी राह निहारे खड़ी-खड़ी।
मांँ तुलसी को भी संग लाई
मैं तुझसे जो मिलने आए।
मैं माखन मिश्री संग लाई,
तेरी बाट निहारु घड़ी घड़ी।
मुझे दरस दिखा जा ओ रघुवर,
तेरी राह निहारे खड़ी-खड़ी।।
नारी
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पढ़ सको तो पढ़ो मुझे ,
सृष्टि का इक सार हूंँ मैं।
दबी कुचली कई अरमानों का,
एक छोटा सा संसार हूंँ मैं ।
देख सूरत सभी हर्षाते ,
दिल का दर्द समझ नहीं पाते।
पाया जीवन सब ने मुझसे,
फिर क्यों कैद में हम जीवन बिताते।
चूड़ी ,बिंदी ,सिंदूर ,मांँगटीका,
क्यों हमारी पहचान बनाते ।
ख्वाब हमारे भी बहुत हैं,
आसमान को छूना चाहते।
बंध बंधन में फिर भी हम ,
जाने क्यों जीवन जीते जाते।
दर्द हो भीतर चाहें जितना,
फिर भी हम हैं बस मुस्काते।
अंधेरे के दीपक जैसे ,
ता उम्र बस जलते जाते।
बात बोलेगी हम नहीं
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गुजरने दो कुछ वक्त को ,
बदलने दो इंसानों के रक्त को,
बदलेंगे जब हालात तो,
बात बोलेगी हम नहीं ।
चल सके जो साथ तो,
हमसफर होंगे सभी ,
अगर चले हम तन्हा तो भी ,
ये राह मंजिल तक जाएगी ही ।
गुजरेगी ये काली रात भी,
सूरज निकलेगा तभी।
हो भले तम कितना भी पर ,
सूरज कभी थमता नहीं ।
जुल्म का यह दौर भी ,
हर घड़ी चलता नहीं ।
कर लो तुमको जो है करना,
हम न बोलेंगे अभी।
राह हो कितने भी मुश्किल ,
तू कभी डरना नहीं।
बदलेगी जब तस्वीर वक्त की,
बात बोलेगी हम नहीं।
है बड़ा मुश्किल सफर ये ,
साथ मिलकर देना सभी
करना बस है कर्म हमको ,
बात बोलेगी हम नहीं
वो पहला प्यार था
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नादान सी उमर ,
ना जवानी लड़कपन ।
एहसासों का भंवर ,
जिंदगी में हिलोरे ले रहा था।
हर तरफ सिर्फ खुशियांँ ही खुशियांँ,
नजर आती थी।
किस बात की ,
इसकी तो खबर भी नहीं थी दिल को।
पर हांँ खुश बहुत रहता था ।
ये सोच कर कि ना जाने क्यों खुश है।
कभी चांँद से बातें करना,
कभी फूलों से ,तो कभी सितारों से ,
झरने नदियांँ सभी में ,
एक अपनापन लगता है ।
मानों सभी आगोश में लेने को बेकरार है ।
या मैं सभी में खुद को समा जाने को ,
कैसा था वो एहसास।
पर हांँ वो वक्त था कुछ खास।
न शब्दों का पता ,
न भावनाओं का ठिकाना ,
पर फिर भी बहुत खूबसूरत था।
हर एक एहसास ।
बेवजह मुस्कुराना ,
कभी खुद से ही नजरें चुराना ।
हो जाता था जाने क्यों ,
दिल देख कर खुद को ही दीवाना ।
एहसासों के बीच कहीं गुदगुदाती था कोई मुझे। बड़ा मुश्किल था ,
उस वजह को समझ पाना ।
कितना नादान होता है ना वो वक्त ,
जो बेचैन भी होता है ,
और बेचैनी का सबब भी नहीं जानता।
एहसास ए मुहब्बत का,
बस इतना सा था फ़साना।
बेचैन रहती थी धड़कन ,
था मुश्किल कुछ भी समझ पाना।
दिल जानता था बस बेवजह मुस्कुराना।
सोचकर कोई चेहरा यादों में खो जाना।
लबों पर हर वक्त कोई तरन्नुम गुनगुनाना। महफिल में तन्हा और तन्हाई में महफ़िल सजाना।
बड़ा नासमझ था सच में वो गुजरा जमाना। बड़ा नासमझ था सच में वो गुजरा जमाना।।
हाल ए दिल
मुस्का रहे हैं लब ये,फिर आंँख नम सी क्यों है ।
तेरे बगैर धड़कन,ना जाने कम सी क्यों है ।
तू है मेरा सहारा , मुझको यही भरम है ।
तुझसे बिछड़ के रोना क्यों कर मेरा करम है
यदि भूल हम गए हैं तो मीठा दर्द क्यों है
तेरे बगैर धड़कन,ना जाने कम सी क्यों है ।
लगता है मानो अब तो,सांँसे रहीं ये थम हैं ।
खुल जाय राज फिर ना इस कसमकस में हम हैं
संबंध यदि खतम हैं तो याद आई क्यों है
तेरे बगैर धड़कन,ना जाने कम सी क्यों है ।
शिकवा न कोई तुमसे, ना ही गिला सनम है
मिलता है हमको वह सब जो भी लिखा करम है ।
यदि भाग्य में नहीं तो करता प्रयत्न क्यों है
तेरे बगैर धड़कन,ना जाने कम सी क्यों है ।
©️®️पूनम शर्मा स्नेहिल☯️