अंजु दास गीतांजलि की 11गजलें

 


ग़ज़ल 

आपबीती  किसी  को   सुनाओ  नहीं 

ज़ख़्म अपने किसी को दिखाओ नहीं ।


हँस   के  लेंगे  मज़ा  लोग  सारे  यहाँ

दु: खड़ा तुम किसी को गिनाओ नहीं ।


कोई  करता  नहीं कुछ किसी के लिए

हाल  अपना  किसी  को  बताओ नहीं । 


दोस्ती   है  महज़  अब   दिखावा  यहाँ

प्यार   तुम  हर  किसी  पे लुटाओ नहीं ।


होश   होता   नहीं   जब   मिलें   ठोकरें ‌

अंजु  संभल  के  चल लड़खराओ नहीं ।


इक ग़ज़ल कुछ यूं कहती हूं कि.......


जाने  अनजाने  में जाने  क्या हो गया

आदमी , आदमी   से   जुदा  हो  गया।


जात  मज़हब  पे   लड़ते  हुए  देखिये

आज कितना बड़ा  फासला हो  गया।


कल तलक जां लुटाते थे इक दूजे पर 

आज़   रिस्ता  उन्हीं का झूठा हो गया 

 

अब अमन  चैन की बात  किससे करें

देखलो  दोस्त  मेरा ख़फ़ा   हो   गया।


अंजु  क़िस्से  करे  अब  उमीदे  वफ़ा

दोस्त  ही  जब मेरा  बेवफ़ा  हो गया।


      ग़ज़ल


वो  दिल   मुझसे   लगाना   चाहता  है।

वो   अब   अपना   बनाना  चाहता  है।


नज़र भर  देख  कर   जीने   लगा  वो।

नज़र   में   अब    बसाना   चाहता  है।


मेरी   वो   मांग   हाथों    से  सजाकर।

मुझे    दुल्हन     बनाना    चाहता   है।


लुटाकर  ज़िन्दगी  अपनी  वो मुझपर।

मेरे    नखरे     उठाना    चाहता     है।


वो अपने बाजुओं में भर   के   मुझपे।

मुहब्बत    को    लुटाना    चाहता   है।


दे कर मुझको ज़माने भर की खुशियाँ।

वो   सारे    ग़म    उठाना   चाहता  है।


कहानी    जो   अधूरी   रह    गई   थी।

वही     अंजू     सुनाना    चाहता    है।


अंजु दास गीतांजलि पूर्णियां बिहार।


गजल


आप  पे    एतबार  करती  हूँ

जान अपनी निसार करती हूँ


हर घड़ी दिल पे वार करती हूँ

ग़म  तेरा  यादगार  करती  हूँ


आप  मेरी  गली  कभी आएँ

आपका  इन्तज़ार  करती  हूँ


दिल  न  आएगा ‌ मेरे  कूचे में

दिल यूँ  ही   बेक़रार करती हूँ


हाल  अंजू  भला  कहूँ  किस्से

वक़्त  को  राज़दार  करती  हूँ


 इक ग़ज़ल कोरोना पर कुछ यूं अर्ज करती हूं कि..


दूर  से  बात   सबसे  किया  कीजिये।

मास्क  से  मुँह  हमेशा ढका कीजिये।।


घर  से   बाहर  कहीं  आइये - जाइये।

हाथ -मुँह साफ़ हरदम रखा कीजिये।।


छोड़ दो खाना अब मीट ,मुर्गा,चिकन।

साग  - सब्जी  हरी भी चखा कीजिये।।


जीने का हक सभी को ख़ुदा ने दिया।

सब जिये ज़िन्दगी, ये दुआ कीजिये।।


ये  कोरोना  इन्हीं  कारणों  से  हुआ।

अंजु परहेज़  से सब  रहा  कीजिये।।

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 गजल


छिपा  लो   पलक   भींग   जाने   से   पहले 

ज़रा     सोचलो    दूर     जाने     से    पहले 

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बड़ा    गर्म     है    बेवफाई    का     आलम

ज़रा     पास    आ    दूर   जाने   से    पहले 

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मुहब्बत     जतालो     अभी     पास   आके 

सजन    अपना   दामन   छुड़ाने   से   पहले 

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बहुत    प्यार   है   तुमसे   देखो   कभी  तुम

मुझे     आँसुओ     में    नहाने    से     पहले

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तेरे     प्यार   से   बढ़ के    जन्नत   नहीं   है

मिटाने     चला    घर     बनाने   से     पहले

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मेरी      जिंदगी     है     तुम्हारी      अमानत

चले   आओ   तुम   सांस   जाने  से     पहले

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ये    अंजू   तुम्हारी     दिलों   जां   जिगर   है

कभी     सोचना    दिल    दुखाने    से   पहले

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सुबह सुबह उठकर इक ग़ज़ल आप मित्रों तक 

मैं और  उर्दू शायरा  बहन Falak  सुल्तानपुरी


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ये  जो   मुहब्बत  है, दर्द  देती  बहुत  है।

रोज़  अकेले   में , ये   रुलाती  बहुत  है।


यार  का  दीदार  जब  तलक  न हो जाये, 

चैन सुकूँ दिल का  फिर उड़ाती  बहुत है।


रात को छत पर, नहीं जो देखूं मैं उसको,

उस  घड़ी  तन  चाँदनी  जलाती बहुत है।


सारा का सारा जहां , हो  जाता है दुश्मन,

आशिकों को  इश्क़ , आज़माती बहुत है।


आस  की  उम्मीद अंजु  तुम नहीं छोड़ो,

इश्क़ हो सच्चा तो साथ निभती बहुत है।

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इक ग़ज़ल 

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वतन   की  हिफाजत  लिखेंगे।

यूँ   अपनी   शहादत   लिखेंगे।


करेगी    मुझे    याद    दुनियां।

ऐसी  हम  तो  चाहत  लिखेंगे।


इधर  की  उधर  बात मत कर।

इसे   हम    बग़ावत   लिखेंगे।


जो हम लिखने पर आ गये तो।

कलम   से   कयामत  लिखेंगे।


सदा साथ  सच  का दी  अंजू।

हमेशा    हकीकत     लिखेंगे।

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  अंजुमन संग्रह से ग़ज़ल

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दिल  पे  तेरे  इश्क़  की   किताब  लिखूंगी।

जब  भी   लिखूंगी  मैं   बेहिसाब  लिखूंगी।


दे  दे  अगर  आप  थोड़ी  सी भी इजाजत 

बगिया  का  खिलता हुआ गुलाब लिखूंगी।


इतने  दिनों   बाद  आप   मुझसे  मिलें  हो

आपको  अब  हम सजन खिताब लिखूंगी।


आप  भी  सुन  लीजिए  नदा मेरे दिल का

हाल  तभी   आपको  को  नवाब  लिखूंगी।


सबसे  अलग  सबसे है जुदा तभी साजन 

आपको इस दिल का अब जनाब लिखूंगी।


ख्वाव बुने  हमने  सारी  आप की खातिर 

इसलिए अब  आपको  ही ख्वाब लिखूंगी।


सामने  अंजू   के  आप  जब  खड़े  होंगे 

सच  कहूँ  कागज़  पे  मैं अदाब लिखूंगी।

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ग़ज़ल 

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है  रंगों  का  त्यौहार आना होली में।

मुझे  रंग  तुम भी  लगाना होली में।


नज़र से नज़र तुम मिलाना होली में।

न करना कोई फिर बहाना होली में।


ख़बर लग गई है मुहब्बत की अपनी।

जरा छुप छुपकर ही आना होली में।


न सोचो कि दुनियां हमें क्या कहेगी।

जलेगी ये दुनियां , जलाना होली में।


नहीं  फिर   मिलेगा  तुम्हें   ये  मौका।

अंजू को  गले  तुम  लगाना होली में।


 __________गजल__________________

तुम्हारे सिवा  कुछ  दिखाई  न दे।

ख़ुदा ऐसी  भी  जग  हँसाई न दे।


तू पत्थर बने   उससे  पहले ही मैं

हो जाऊं अंधी  कुछ दिखाई न दे।


जुदा  होके  तुझसे जो जीना  पड़े

ऐसी   ज़िन्दगी   की  दुहाई  न  दे।


गुजारुं   तेरे  बिन मैं  ये    ज़िन्दगी

ख़ुदा  मुझको  ऐसी  जुदाई  न  दे।


वफ़ादार     अंजू    रही    ताउमर

वफ़ा  की  जगह  बेवफ़ाई   न  दे।

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 अंजु दास गीतांजलि 

पूर्णिया   ( बिहार )

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