डॉ अनुज कुमार चौहान "अनुज"
चाँदनी रात के चाँद की दास्ताँ,मैं बहुत देर तक गुनगुनाता रहा ।
राह अनजान पर यूँ ही चलता रहा,वो मुझे देखकर मुस्कराता रहा ।।
वक्त तूफान ले राह में आ गया ।
साथ में गम उजालों का तम छा गया ।।
हाथ झकझोर कर ,भाव खोते गये ।
फिर भी ख्वाबों को उनके ,सजाता रहा ।।
राह अनजान पर, यूँ ही चलता रहा ।
वो मुझे देखकर , मुस्कराता रहा ।।
क्या ?कहूँ दोस्तो बात इजहार की ।
भोर खामोश थी ,शाम रविवार की ।।
टूट कर के गिरे ,व्योम के पुष्प जब ।
मौन तारा कहीं ,टिमटिमाता रहा ।
राह अनजान पर, यूँ ही चलता रहा ।
वो मुझे देखकर ,मुस्कराता रहा ।।
स्वप्न मदहोश थे,नींद थी जोश में ।
सोम्यता को समेटे , आगोश में ।।
कुछ लिखे पत्र तृण,दोस्ती में कभी ।
तीर खंजर लिये , वो मिटाता रहा ।
राह अनजान पर , यूँ ही चलता रहा ।
वो मुझे देखकर ,मुस्कराता रहा ।।
शब्द जोड़े कभी, भाव मोड़े कभी ।
ओश की बूँद के ,पाँव ओढ़े कभी ।।
वाह ! थी ही नहीं, वो सरेआम की ।
दाग दामन अनुज ,गल छिपाता रहा ।
राह अनजान पर, यूँ ही चलता रहा ।
वो मुझे देखकर , मुस्कराता रहा ।।
डॉ अनुज कुमार चौहान "अनुज"
अलीगढ़ , उत्तर प्रदेश ।