सुभाषिनी जोशी 'सुलभ'
तूफानों की ओर चलेंगे मन के मांझी आज तो।
नदी में उल्टी धार चलेंगे मन धारा को थाम तो।।
बहुत डर लिए हालातों से, बस अब और नहीं।
डरकर भागने वालों का कहीं उद्धार नहीं।
आज झंझावात से टक्कर लेकर दम लेंगे,
शमा उठाई है हमनें आने ना देंगे शाम तो।।
तूफानों की ओर चलेंगे मन के मांझी आज तो।
नदी में उल्टी धार चलेंगे मन धारा को थाम तो।।
हरेक महाप्रभंजन से टकरा जाएँगे हम।
पुनीतम स्वर्ग धरती पर लेकर आएँगे हम।
अभी तो लहरों के विपरीत भिड़ना हे हमको,
भयाक्रांत होकर चलने वाला कोई ना काम तो।।
तूफानों की ओर चलेंगे मन के मांझी आज तो।
नदी में उल्टी धार चलेंगे मन धारा को थाम तो।।
सभी जंजीरें काटेंगे हिम्मत के हाथ हम।
ऊँचाई पर बात करेंगे हवा के साथ हम।
तेरा समय माना कठिन है मनवा धीरज धर,
यह वक्त भी कट जाएगा राम का नाम है धाम तो।।
तूफानों की ओर चलेंगे मन के मांझी आज तो।
नदी में उल्टी धार चलेंगे मन धारा को थाम तो।।
सुभाषिनी जोशी 'सुलभ'
इन्दौर मध्यप्रदेश