जरा फुरसत में मिलना मुझसे ऐ जिंदगी,
तुझसे बरसों का हिसाब लेना है!
सितम तो बहुत ढाए तूने बेदर्द दिल से,
महरूम उसको रखा एक बेशकीमती आँचल से,
हर एक उस सितम का वाजिब जवाब लेना है!
खुशियों का गुलदस्ता जो तूने छीना है क्यू कांटे राहों में बिछाए है,
ना खिला ना मुस्कराया उसका बचपन, ना मिली जो गोद बचपन में, उस झूले का हिसाब लेना है!
तभी तो कहती हूँ जरा फुरसत में मिलना मुझसे ऐ जिंदगी तुझसे बरसों का हिसाब लेना है!