'ऐनुल' बरौलवी
आपकी ये दोस्ती अच्छी लगी
मुस्कुराहट ओ हँसी अच्छी लगी
घर पे मेहरबां कभी तो आइये
नज़रों से ये मैकशी अच्छी लगी
आजकल अख़बार की हैं सुर्ख़ियाँ
आपकी अब शायरी अच्छी लगी
आपका बातों से मुझको छेड़ना
और उसपर दिल्लगी अच्छी लगी
चाँद - सूरज ओ सितारों से मिला
मुझको लेकिन तीरगी अच्छी लगी
साथ मेरे ग़म के लश्कर रात-दिन
पर मेरी ये ज़िन्दगी अच्छी लगी
चाँदनी में आपका आग़ोश फिर
आपकी ये आशिक़ी अच्छी लगी
ना दिखावा , ना बनावट है 'ऐनुल'
चेहरे की ये सादगी अच्छी लगी
'ऐनुल' बरौलवी
गोपालगंज (बिहार)