दो चार सखियाँ बात कर रही थी खड़ी खड़ी,

एक दूसरी को बता रही थी वो बात बड़ी बड़ी।


एक बोली सुनो कुछ ऐसी कहानी बनी मेरे साथ,

बहुत खून जला मेरा, सोचकर बात सारी रात।


कल सरे बाजार कैसे मुझसे ऐसी भूल हो गई,

मुफ्त में हरा धनिया नहीं लेने की चूक हो गई।


दूसरी बोली मैं अपना दुःख तुम्हें कैसे बताऊँ,

समझ नहीं आ रहा, उन्हें गुस्सा कैसे दिखाऊँ।


उनकी कही बात ही मेरी सबसे बड़ी परेशानी है,

वो बोले सुनो ज्यादा गुस्सा, बुढ़ापे की निशानी है।



इतनी सुनकर तीसरी बोली मेरी कहानी अजीब है,

शराब पीनी छोड़ दी उन्होंने, यूँ फूटा मेरा नसीब है।


शराब के नशे में मुझे वो हेमा मालिनी कहता था,

कुछ माँग लेती वो दे देता, मुझ पर फिदा रहता था।


इतनी सुनकर "सुलक्षणा" अपनी हँसी रोक नहीं पाई,

देख यूँ खिलखिलाता उसे वो भी थोड़ी सी मुस्कुराई।


©® डॉ सुलक्षणा

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