वीरेंद्र सागर
वक्त ठहरा न कभी किसी के लिए भी,
सुबह के सूरज को हर शाम ढलते देखा है मैंने ||
मोहब्बत के शहर में गमों को पलते देखा है मैंने ||
मोहब्बत नाम यूं तो फूल सा लगता है,
लेकिन कांटों पर लोगों को चलते देखा है मैंने ||
मोहब्बत के शहर में गमों को पलते देखा है मैंने ||
वक्त बदलता है तो बदल जाते हैं सब,
मौसम को कई बार बदलते देखा है मैंने ||
मोहब्बत के शहर में गमों को पलते देखा है मैंने ||
एतबार ना करना तू इस जहान में किसी का,
शमा से ही परवाने को जलते देखा है मैंने ||
मोहब्बत के शहर में गमों को पलते देखा है मैंने ||
फना हो गए जो मोहब्बत में किसी की,
ऐसे कई आशिकों को श्मशान में जलते देखा है मैंने ||
मोहब्बत के शहर में गमों को पलते देखा है मैंने ||
- वीरेंद्र सागर
- शिवपुरी मध्य प्रदेश