अनुरोध सुनो हे मुनि नंदन,
करती हूं तुम्हारा अभिनंदन।
मैं स्वर्ग लोक से आई हूं,
स्वीकार करो मेरा वंदन।
कोमल कंचन काया मेरी,
नो पुष्पों का श्रृंगार किए।
मैं खड़ी प्रतीक्षा में कब से,
नवल प्रेम उपहार लिए।
यह नेत्र मेरे हैं सर पनंग,
अधर कमल की माला है।
सांसों में गंध कस्तूरी की,
तन मन पूरा मधुशाला है।
अधरों से अमृत बरस रहा,
सुर नर मुनि गण तरस रहा।
तुम नेत्र खोलो हे मुनि नंदन,
मधुमास खड़ा तरस रहा।
तुम ठाट बा ट से बनवासी,
मैं प्रेम सिंधु फिर भी प्यासी।
तुम तेजपुंज तक की ज्वाला,
मैं मादकता की मधुशाला।
दो नैन मेरे मधुलोक प्रभु,
यह तप के हैं आलोक प्रभु।
मैं तप हूं तप का फल भी हूं,
मुझसे कर लो संयोग प्रभु।
होगा अब मधुर मिलन,
नियति ने रचा स्वयंबर है।
तुम मेरे हो बस मेरे हो,
जैसे धरती का अंबर है।
मैं प्रेम की सरिता भर लाई,
नैनो के इस गागर में।
मैं बह जाऊं और खो जाऊं,
वक्षस्थल के इस सागर में।
प्रीत का प्रीत निवेदन अब,
हृदय से स्वीकार करो।
दृष्टि डालो मुनि श्रेष्ठ जरा,
इस रूप को अंगीकार करो।
कामिनी मिश्रा
वरिष्ठ साहित्यकार
प्रा0वि0-लालमन खेड़ा,बीघापुर,
उन्नाव-उ0प्र0,9695242037