डॉ अनुज कुमार चौहान "अनुज"
गली-गली सन्नाटा फैला , तुम कैसे ? हो बतलाना ।
प्यार अगर सच्चा करते हो, मुझसे मिलने मत आना ।।
राहें आज अजनबी सी हैं,चलने में मन घबराये ।
सूरज ओढ़े राग तसल्ली, चंद्र सखा सँग भरमाये ।।
पीपल नीचे छाया में भी,बैठत है दिल अब जाना ।
प्यार अगर सच्चा करते हो,मुझसे मिलने मत आना ।।
बुझे हुए हैं अरमानों के,दीप जलें सहते गम हैं ।
घर के सभी सदस्यों के भी,गहने इतराते कम हैं ।।
निशा तड़पती तम ही तम जग,दिवस भूल घर खत छाना ।
प्यार अगर सच्चा करते हो,मुझसे मिलने मत आना ।।
कीमत सुखद पता चलती है,रिश्ते नातेदारों की ।
अपनी धुन में गँवा दिये जो,नये-नये किरदारों की ।।
समय बहुत अलबेला पंछी ,हँसते-रोते पथ लाना ।
प्यार अगर सच्चा करते हो,मुझसे मिलने मत आना ।।
बेशक परेशान होगे प्रिय ,निजी बहाने दीखे हो ।
खड़े -खड़े चलने वालों से,गीत पुराने सीखे हो ।।
"अनुज"लिखावट भूल गया सब,मीत किताबें रट गाना ।
प्यार अगर सच्चा करते हो,मुझसे मिलने मत आना ।।
डॉ अनुज कुमार चौहान "अनुज"
अलीगढ़ , उत्तर प्रदेश ।