नीरज कुमार सिंह
मां ही , मंदिर
मां ही पूजा , इस सा
कौन है दूजा।
रक्षक है मां
सेवक जन्मदात्री
पालक भी मां।
मां ढाल सी
रहे इर्द गिर्द वो
लाली ,लाल की।
मां त्याग है
मां से ही जीवन के
अनुराग है।
मां हर्ष है
संग हो तो मंगल
पूरे वर्ष है।
मां मुस्कान है
स्नेह की लगती है
मां दुकान है।