ये अँधेरे की चीखे सुनकर,
मन मेरा कुछ घबराया है ll
चारों और मचा हुआ है कौहरम,
ये कैसा आया जमाना है ll
लाशों के ऊपर लाशें सुलग रही है,
अपनों ने भी ना हाथ लगाया है ll
सांसे ऐसे टूट रही है जैसे पेड़ों
से सूखे पत्ते झड़ जाते है ll
ये कैसी लाचारी है एक को लीन कर के
आते है तो दूसरे की तैयारी है ll
आलिया खान.....
दिल्ली.......
पेपर,