कठपुतली

अनिता मंदिलवार सपना

मैं एक बूँद 

समाहित सागर

तुम ठहरे

मैं हूँ प्रतीक 

तुम विस्तार मेरे

मैं एक भ्रम 

तुम निराकार हो

कठपुतली 

नहीं समझो तुम

कंटक बन 

पाँव में चुभते हो।

कष्टदायक

बन जाता जीवन

निकले आह

पतझड़ नीरस

बन बीहड़ 

वसंत का आगमन 

प्रतीक्षारत

मेरे दोनों नयन

कतरे पंख लिए

विस्मृत मन

सपना की उड़ान

परिधि संकुचित!



Popular posts
अस्त ग्रह बुरा नहीं और वक्री ग्रह उल्टा नहीं : ज्योतिष में वक्री व अस्त ग्रहों के प्रभाव को समझें
Image
सफेद दूब-
Image
परिणय दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
Image
मैंने मोहन को बुलाया है वो आता होगा : पूनम दीदी
Image
भैया भाभी को परिणय सूत्र बंधन दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
Image