रश्मि मिश्रा 'रश्मि '
हवा बेखौफ है बेचेन जंगल हैं
खुशबुएं क्यों हैं दहशत में?
समझ में कुछ नहीं आता
नदी की धार सोई है
रवि के ताप से व्याकुल
समंदर भी मुसीबत में
समझ में कुछ नहीं आता
कहां गुम हो गए
इंसान और ईमान अब दोनों
कैद रिश्ते हैं नफरत में
समझ में कुछ नहीं आता
आंधियों और तूफानों ने
मिलकर दोस्ती कर ली
हरेक लम्हा कयामत है
समझ में कुछ नहीं आता
वो गुलशन भी हुआ घायल
जहां गुल मुस्कुराते थे
वहां अब बस सियासत है
समझ में कुछ नहीं आता
गवाही दे रहे चेहरे
दिलों में आग सुलगी है
अब रिश्ते भी अदावत में
समझ में कुछ नहीं आता ।
रश्मि मिश्रा 'रश्मि '
भोपाल (मध्यप्रदेश)