तू नाराज तो है,
अपने इंसान से भगवान,
नहीं तो मंदिरों के दरवाजे,
बंद ना करता,
सजा दे रहा हैं कुदरत से,
खिलवाड की नहीं तो,
गुरू द्वारे से लंगर,
कभी ना उठता।
उन बारिश की बूंदो से,
संदेश मिला तो,
रोता तो तू भी हैं।
जब इंसान आंसू बहाता है,
माफ कर दे,
अपने बच्चो के हर गुनाह ,
सब कहते है,
तेरी मर्जी के बिना तो,
पत्ता भी नहीं हिलता,
प्रभु यहां तो पूरी,
दुनिया हिल रही है,
हमने तो इंसान को,
बदलते हुए देखा है।
लेकिन तू कैसे बदल,
सकता है प्रभु।
सुनीता जी,
शोध छात्रा-
काशी विद्यापीठ,
भीमनगर,सेेेेन्ट्रल जेल रोड,
वाराणसी,उ0प्र0