इश्क़ में ये दिल लुटा बैठे हैं हम
और अपना घर जला बैठे हैं हम
ज़िन्दगी से रू - ब - रू जबसे हुये
आईने को फिर सजा बैठे हैं हम
दोस्तों से दुश्मनी है आजकल
आईना जबसे दिखा बैठे हैं हम
चाँद आता है नहीं छत पर अभी
चाँदनी को अब भुला बैठे हैं हम
प्यार में धोका दिया जब बेवफ़ा
ग़म को सीने से लगा बैठे हैं हम
नफ़रतों को ख़त्म करने के लिये
प्यार की गंगा बहा बैठे हैं हम
दूर होगी तीरगी घर - घर यहाँ
एक सूरज को उगा बैठे हैं हम
तितलियाँ आने लगीं 'ऐनुल' यहाँ
फिर चमन में गुल खिला बैठे हैं
'ऐनुल' बरौलवी
गोपालगंज (बिहार)