दर्द में डूबा है दामन मेरा,
कब होगा आगमन तेरा ?
श्वासें उखड़ रही हैंअब तो,
एक बार देख लूं चमन तेरा।
चेहरा निस्तेज हो गया है,
फिर से कर लूं सुमिरन तेरा।
ये घड़ी बड़ी ही कठिन है,
आओ कर लूं दर्शन तेरा।
बहुत भटकी हूं इधर-उधर,
अब पकड़ लूं चरन तेरा ।
मेरा अस्तित्व मां-बाप से है,
पर करते हैं सभी नमन तेरा।
क्योंकि तू ही है पालनहारा,
हरसूं लहर रहा है परचम तेरा।
बस आखिरी इच्छा पूरी कर,
पा सकूं आशीष सुमन तेरा।
अनुपम चतुर्वेदी
सन्त कबीर नगर,उ०प्र०