अगर मैं कहूं तुम्हे
धरती सी उदारमना, उर्वरा
या नीले नभ की विशालता!!
हृदय की तमाम भावनाओं की
एक मुखर आवाज,
या ममता के आंगन में खिला
कोई अनाघ्रात पुष्प!
पावनता की मूर्ति सी,
तब भी नहीं होती पूर्ण तुम्हारी परिभाषा
नारी! तुम केवल अहसास हो!
जीवन के मरूथल में
अनबुझी प्यास नहीं,
जीवन का कोमल अहसास हो,
नारी तुम केवल मन का विश्वास हो,
पद्मा मिश्रा
जमशेदपुर झारखंड