ग़ज़ल

 

समीर द्विवेदी नितान्त

कैसा है ये जहाँ..।।

रहता है बदगुमाँ..।।


मिलता नहीं कोई...

इस दिल को हम जुबाँ..।।

खुश हाल जो दिखे..

पाया न वो मकाँ..।।


बारिश हो प्यार की..

वो दिन रहे कहाँ..।।


अब इश्क का सिला..

कैसे करूँ बयाँ..।।


कट जाएगी नितान्त..

खोलेगा जो जुबाँ..।।


समीर द्विवेदी नितान्त

कन्नौज.. उत्तर प्रदेश

Popular posts
सफेद दूब-
Image
अस्त ग्रह बुरा नहीं और वक्री ग्रह उल्टा नहीं : ज्योतिष में वक्री व अस्त ग्रहों के प्रभाव को समझें
Image
मैट्रिक की परीक्षा में 451 (90.2%) अंक लाने पर सोनाली को किया गया सम्मानित
Image
परिणय दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
Image
भोजपुरी भाषा अउर साहित्य के मनीषि बिमलेन्दु पाण्डेय जी के जन्मदिन के बहुते बधाई अउर शुभकामना
Image