समीर द्विवेदी नितान्त
कैसा है ये जहाँ..।।
रहता है बदगुमाँ..।।
मिलता नहीं कोई...
इस दिल को हम जुबाँ..।।
खुश हाल जो दिखे..
पाया न वो मकाँ..।।
बारिश हो प्यार की..
वो दिन रहे कहाँ..।।
अब इश्क का सिला..
कैसे करूँ बयाँ..।।
कट जाएगी नितान्त..
खोलेगा जो जुबाँ..।।
समीर द्विवेदी नितान्त
कन्नौज.. उत्तर प्रदेश