कवि अतुल पाठक " धैर्य " की रचनाएं

गुनाह तो नहीं है

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बूंदों का बरसना गुनाह तो नहीं है,

गुलों का महकना गुनाह तो नहीं है।


आसमां में सितारों का चमकना गुनाह तो नहीं है,

शबनम आफताब से क्यों न मिले

किसी को चाहना गुनाह तो नहीं है।


मोहब्बतों की रुत आना गुनाह तो नहीं है,

किसी का किसी पर दिल आना गुनाह तो नहीं है।


भंवरों का फूलों पर मंडराना गुनाह तो नहीं है,

नज़र से नज़र मिलाना गुनाह तो नहीं है।


अरमान~ए~गुल खिलना गुनाह तो नहीं है,

दिल के जज़्बात बेताब होना गुनाह तो नहीं है।


दिल से दिल तक ग़ज़ल उठना गुनाह तो नहीं है,

प्यार का प्यार में मचल उठना गुनाह तो नहीं है।


अभिप्रेरणा

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सतर्क रहें भयभीत नहीं,

कोरोना बीमारी है भूत नहीं।


हर भोर से पहले हुआ गहरा अंधियारा,

पर कभी हुआ न ऐसा कि हुआ न हो सवेरा।


अभिप्रेरणा और आत्मबल ही जीवन को संबल देते हैं,

हिम्मत न खोना हारे हुए भी कभी न कभी तो जीते हैं।


बस धैर्य रखो एहतियात बरतो,

हौंसलों को ज़िन्दाबाद रख लो।


देखना एक दिन ऐसा भी आएगा,

कोरोना को हराकर मेरा भारत जीत जाएगा। 


साधारण अजनबी 

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कोई साधारण अजनबी सा इंसान इस दिल में घर कर जाता है,

अजनबी होकर भी अपनेपन का एहसास कराता है।


वो बहुत अलग है औरों से उसे भीड़ में चलना न भाता है,

एकांत मंज़ूर है उसे कभी पर दिखावटी लोगों का साथ रहना रास न आता है। 


उसके जीने का अंदाज़ अलग है,

उसके सादापन का साज़ अलग है।


झरने सा वो बहता जाता,

ख़ुशी हो या ग़म मुस्कुराता जाता।


कभी न थकता चलता जाता,

जीवन को नई राह दिखाता।


तन्हा मन उसका ख़ुद्दार बहुत है,

परेशाँ है मगर जताया न करता।


यादों की बस्ती

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कभी वक्त कहाँ ठहरा है,

देखूँ जहाँ जहाँ तेरी यादों का पहरा है।


यादों की दीवारें मौन गुंज़ार कर रही हैं,

तन्हाई लम्हों को फिर से कुरेद रही है।


आज भी हवाएं तेरा हाल बताने आती हैं,

मन में होती सरसराहट जैसे तेरे गुनगुनाने की सदा आती है।


बेज़ार दिल अक़्सर पूछ लेता है,

ज़िन्दगी का सबब क्यों कुछ न कहता है।


यहां कोई और कभी न आता है,

ये यादों की बस्ती है यहां सिर्फ तेरा ख़्याल आता है।


रचनाकार-अतुल पाठक " धैर्य "

पता-जनपद हाथरस(उत्तर प्रदेश)

मौलिक/स्वरचित रचना

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