कवियित्री रंजना बरियार की रचनाएं

"स्मृति पटल"


हो जाने वाले स्मृति शेष,

याद बहुत आते हैं,

उनके रूप ,

जो सहन से परे हुआ करते थे,

वो भी कर्ण प्यारे,

नयन के तारे हो जाते हैं!

स्मृति पटल है डायरी, 

एक धरोहर ,

अंकित होते इनमें 

प्रस्फुटित पुष्प प्रतिपल,

जीवनियाँ भी होती यहाँ 

डूबे सितारों की दर्ज!

ज्यों ज्यों आगे बढ़ती वयस,

परत दर परत,

डायरी हो श्रृंखलित, 

होती जाती संकलित!

है ये धरोहर अति अहम्,

मन होता जब उदास,

स्वत: पन्ने लगते फड़फड़ाने,

दुखद पल देते सीख,

सुखद पलों के दृष्टिपान से 

मिल जाती है ऊर्जा!

वर्तमान भूत साथ लिए

स्मृति चलती जीवन पर्यंत,

लगता कुछ कभी 

खोया ही नहीं हमने,

स्मृति पटल पे दर्ज होकर 

सब होते साथ हमारे!

प्रभु ने अगर रचा होता 

नहीं स्मृति का प्रावधान ,

जीवन विकास में होता 

बहुत बड़ा व्यवधान!

अतीत वर्तमान की कड़ियाँ 

जोड़कर रखते हैं हम

भविष्य विकास की आधारशिला!

बुनते हैं इसपर ही 

हम प्रोधोगिकी,

कला की विकास लीला!


"बिन फगुआ मन फगुआ "


मुद्दतों बाद देखा 

उसने मेरी तरफ़ 

दृगों के कपाट खुल गये,

प्रेम पीयूष छलकने लगे,

मन फगुआ हो गया!


स्पर्श अनायास पीठ पे,

जो उनकी हथेली का हुआ,

तन मन तरंगित हुआ,

आभास आसरे का होने लगा,

मन फगुआ हुआ!


स्नेहिल बातों से उनके,

बोझिल मन ओझल हुआ,

सुरमयी धुन स्फुरित हुआ,

भँवरों की गूँजन होने लगी,

मन फगुआ हुआ!


प्रेम से उसने नाम पुकारा,

चूड़ियाँ खनकने लगीं,

पाज़ेब थिरकने लगे,

अधर गुलाबी हुए,

मन फगुआ हुआ!


सुन मुरली की धुन,

उर नृत्य करने लगा,

हिय मलंग हुआ,

पंख लगा मैं उड़ चली,

मन फगुआ हुआ!


बिन फगुआ ही मन

फगुआ होता गया,

फूल खिलते गये,

पंखुड़ियों के सौरभ,

मन फगुआ करते गये!

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रंजना बरियार

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