नंदिनी लहेजा
हम परिंदे उड़ रहे अपनों संग स्वछंद से नीले आकाश में
कभी इस और,कभी उस दिशा ,बेफिक्र से आकाश में
इक तो आज़ादी का आनंद हमें,दूजा अपनों का साथ है
पर आज देख रहे हम परिंदे कैसे मानव पिंजरों में कैद बड़ा बेताब है
देखों ना कैसा समय आ गया,आज जीवन तुम्हारा हुआ परिंदों के सामान
पिंजरे में कैद हुए तुम सब अकेले ,और हमें मिला है खुला गगन
प्रकृति भी देखो तो मानव ,कैसे खेल दिखाती है
हम न समझते कभी इसकी अहमियत,और विपदा ऐसे आ जाती है
ना हो परेशान तू बन्दे,विपदा की घडी चली जाएगी
कल इक नई सुबह के संग,हम परिंदों सी आज़ाद तेरी जिंदगानी हो जाएगी
नंदिनी लहेजा
रायपुर(छत्तीसगढ़)
मौलिक स्वरचित