कवि जितेन्द्र'कबीर' की रचनाएं



असहाय लोगों की 'हाय'


अगर होता होगा कोई असर यहां

महामारी से बेमौत मरने वाले लाखों 

असहाय लोगों व उनके परिजनों की

 'बद्दुआ' और 'हाय' में,

 

 तो वो सबसे पहले लगेगी...

 

 इस देश के नीति-निर्माताओं

और सियासतदानों को,

जो नाकाम रहे संभावित खतरे को भांपने में,

समय रहते ना बना पाए जो आपदा प्रबंधन के लिए

कोई कारगर नीति और ना ही सुनिश्चित करवा पाए

उसका सफलतापूर्वक कार्यान्वयन,


महामारी की पहली लहर से दूसरी लहर के बीच

मिले समय में

महामारी के दृष्टिगत पर्याप्त अस्पतालों, वेंटीलेटर व ऑक्सीजन बेड का इंतजाम करने के बजाय

लापरवाही की पराकाष्ठा तक लगे रहे

भीड़ जुटाने वाले कार्यक्रमों के आयोजन में,


फिर यह 'हाय' लगेगी...

जीवन रक्षक दवाओं और ऑक्सीजन सिलेंडरों की

कालाबाजारी करने वाले अवसरवादी गिद्धों को,

जो इस विकट आपदा में भी

हजारों लोगों के प्राणों की कीमत पर लगे रहे

सिर्फ अपना स्वार्थ साधने में,


तत्पश्चात यह 'हाय' लगेगी...

सब राजनीतिक दलों के झंडाबरदारों और

उनके समर्थकों को,

जिन्होंने सारा विमर्श केंद्रित रखा चुनावी मुद्दों पर ही,

कोरोना अनुरूप व्यवहार की चर्चा

कभी आ नहीं पाई उनके एजेंडे में,

अपने अपने दल नायकों की महानता का प्रचार ही

रहा उनकी प्राथमिकताओं में

और महामारी के संबंध में उनका ज्यादातर योगदान रहा

एक-दूसरे पर दोषारोपण तक ही सीमित,


अंत में यह 'हाय' लगेगी...

उन सब लोगों को

जो आंखें होते हुए अंधे, कान होते हुए बहरे और

दिमाग होते हुए बने रहे मूर्ख और लापरवाह,

लाख चेतावनी के बावजूद

जिन्होंने नहीं अपनाया कोरोना अनुरूप व्यवहार

व बनते रहे हिस्सा भीड़ जुटाने वाले कार्यक्रमों में,


और अगर नहीं लगती है 

इन बेमौत मौतों की 'हाय' किसी को...


तो फिर जरूरत नहीं है

इस धरती पर पाप-पुण्य, धर्म-अधर्म,

स्वर्ग-नरक जैसे नैतिकता के प्रतिमानों की,


तो फिर जरूरत नहीं है

इस धरती पर सत्य-असत्य, न्याय-अन्याय,

शोषित-शोषक, इंसानियत जैसे प्रतिमानों की।

                                      

जाने से पहले...


जिला अस्पताल के आई.सी.यू. में

कोरोना के कारण हुए

फेफड़ों के गंभीर संक्रमण से 

जूझता हुआ

एक तीस वर्षीय युवक,

वेंटीलेटर और ऑक्सीजन स्पोर्ट के सहारे

पिछले चार दिनों से

लड़ रहा है आसन्न मौत से

बहुत ही पीड़ादायक एक जंग,


जाने से पहले...

वो खेलना चाहता है

अपने छोटे-छोटे दोनों बच्चों से थोड़ी देर,

उनके भविष्य के लिए

करके जाना चाहता है कुछ इंतजाम,

ताकि बिना बाप के

उसकी जिंदगी में ना आएं ज्यादा मुश्किलें।


जाने से पहले...

वो मिलना चाहता है

कुछ देर के लिए अपनी सीधी सादी पत्नी से,

मांगना चाहता है उससे माफी

जीवन भर के साथ की कसमें खाकर

यूं अधर में उसे छोड़ जाने की,

सिखाना चाहता है उसे कुछ दुनियादारी की बातें

ताकि वो कर सके सम्मानपूर्वक जीवनयापन

उसके बगैर भी।


जाने से पहले...

वो देना चाहता है दिलासा

अपने बूढ़े मां-बाप को,

उनकी गोद में थोड़ी देर सिर रखकर

भूल जाना चाहता है इस अकल्पनीय कष्ट को,

करना चाहता है उनसे कुछ बातें

जिन्हें याद कर बिता पाएं वो 

अपनी बची हुई जिंदगी।


ओह!

कितना कुछ करना चाहता है वो

अपने जीवन के चंद बचे लम्हों में,

लेकिन यह लगातार गिरता ऑक्सीजन का स्तर

नहीं दे रहा उसे हिलने की भी इजाजत,


कितना अभिशप्त है वो,

अपनों से मीलों दूर

पी.पी.ई. किट डाले हुए अनजान लोगों के बीच

प्राण छोड़ने को हो रहा है मजबूर,


जाने से पहले...

वो कम से कम एक बार

होना चाहता था अपनों के बीच,

मगर अफसोस

यह हो ना पाया।


उपनामों की बहार


देख फेसबुक पे

उपनामों की बहार,

मन में घुस आया

जबरन यह विचार।

पहले होते थे

राम, सिंह, चंद,

 और कुमार जैसे

गिनती के ही उपनाम।


बढ़ता ये प्रचलन

धर्म,जाति व गोत्र की

चेतना का है प्रत्यक्ष प्रमाण

और साथ ही

जाति आधारित भेदभाव का भी।


इक्कीसवीं सदी में जबकि

शिक्षा के बढ़ते प्रसार

के चलते,

टूटनी चाहिए थी यह दीवार


एक धर्म, एक राष्ट्र

के नारों के बीच

तैयार हो रहे हैं,

मतभेद और मनभेद के

नये अंकुर,

जिसकी फसलें काटेंगे 

राजनेता,

हर बार सत्ता हथियाकर

और परिणाम भुगतेगी 

जनता,

हमेशा की तरह बिलबिलाकर।


अंतहीन संघर्ष की शुरुआत


दूरदराज क्षेत्र के एक

गांव में रहते हुए...

जहां एक कम पढ़े-लिखे इंसान के लिए

बहुत सीमित हैं कमाई के अवसर,


नियमित किसी आय के अभाव में

खेती-बाड़ी करके

अपने दो छोटे-छोटे बच्चों के

भरण-पोषण करने का थका देने वाला संघर्ष

डरा रहा है उसको

पर वो किसी तरह कर लेगी उसको,


बरसों से अधरंग के शिकार 

ससुर और कई बीमारियों से ग्रस्त सासू मां की

देखभाल की जिम्मेदारी आ गई है

अब अकेले उसी के कंधों पर,

चिंताग्रस्त है वो ऐसी स्थिति से

पर वो किसी तरह निभा लेगी उसको,


तीस साल की छोटी सी उम्र में

खो दिया है उसने

घर के इकलौते कमाने वाले

अपने जीवनसाथी को,

साथी के बिना जीवन रूपी डगर पर चलने की

कल्पना भी ना की थी कभी उसने,

बहुत परेशान है इन हालातों में अकेले पड़ जाने से

पर वो किसी तरह बिता लेगी उसको,


मेहनत मजदूरी करके दिन-रात

हो सकता है जो कुछ भी

उतनी मुसीबतें तो किसी तरह टाल लेगी वो,

मगर...

छोटी उम्र में विधवा हो जाने के साथ ही

बदल जाएंगी 

जो नजरें समाज में उसके प्रति,


उसकी मजबूरियों का फायदा उठाने की कोशिश में

लालायित हो जाएंगे

जब लोग उसकी देह के लिए,


पति को खा जाने के ताने

जब तब मार देंगी गांव की स्त्रियां उसको,

तब किस तरह यह जिंदा लाश

सह पाएगी इतना लांछन,

यही सोच तिल-तिल मार रही है उसको।

 

तब तक बेमिसाल नहीं...


लिखते बहुत लोग हैंऐ

लेकिन लिखा हुआ किसी का

तब तक बेमिसाल नहीं,

पढ़कर उसे किसी के हृदय में

जब तक आता उबाल नहीं।


पढ़ते बहुत लोग हैं

लेकिन पढ़ा हुआ किसी का

तब तक बेमिसाल नहीं,

बोल कर पेश ना करे उसकी वो

जब तक कोई मिसाल नहीं।


बोलते बहुत लोग हैं

लेकिन बोला हुआ किसी का

तब तक बेमिसाल नहीं,

सुनकर उसे विश्वास करने का

जब तक होता कमाल नहीं।


सुनते बहुत लोग हैं

लेकिन सुना हुआ किसी का

तब तक बेमिसाल नहीं,

उतार कर जिसे फौरन मन में

अमल में लाता इंसान नहीं।


                    जितेन्द्र 'कबीर'

गांव नगोड़ी डाक घर साच तहसील व जिला चम्बा हिमाचल प्रदेश

संपर्क सूत्र - 7018558314

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