पूनम शर्मा स्नेहिल
नियति पल पल जग छले ,
छले जगत संसार ।
करती नहीं है ये कभी ,
किसी पे कोई उपकार।
नियति वश में पड़ मानुष,
हो जाता है लाचार ।
हो जब इसका कोई प्रहार ,
बहती बस अश्रु धार ।
कर्म किया जो भी जिसने ,
फल देती है हर बार ।
करती सभी ऋण पूरा ,
कुछ रखती नहीं उधार ।
सोच समझकर इस जग में ,
करना कर्म साकार ।
जैसा बीज तू बोलेगा ,
फल खाएगा हर बार ।
नियति पल पल जग छले ,
छले जगत संसार ।
करती नहीं है ये कभी ,
किसी पे कोई उपकार।।
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